खैरागढ़ जिले का बल्देवपुर गांव विडंबना का पर्याय बन चुका है। एक ओर इसकी भूमि से निकली गिट्टी ने छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में हजारों किलोमीटर पक्की सड़कों का निर्माण संभव बनाया है, तो वहीं दूसरी ओर यह गांव खुद एक पक्की सड़क के लिए वर्षों से तरस रहा है।
बल्देवपुर और कलकसा को डोंगरगढ़ रोड ( घोठिया चौक) से जोड़ने वाला तीन किलोमीटर लंबा रास्ता अब भी मुरूम से भरा कच्चा मार्ग है। हर रोज इस रास्ते से सैकड़ों भारी वाहन गिट्टी लेकर निकलते हैं, लेकिन इन्हीं वाहनों से उड़ती धूल और खराब रास्ते का सबसे ज्यादा खामियाजा ग्रामीण और स्कूली बच्चों को भुगतना पड़ता है।
स्कूली बच्चों की सबसे बड़ी पीड़ा
कलकसा गांव में कक्षा पाँचवीं तक ही स्कूल है। इसके आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को बल्देवपुर या बढ़ईटोला जाना पड़ता है। लेकिन वहां तक जाने के लिए बच्चों को उसी धूल भरे और उबड़-खाबड़ कच्चे रास्ते से गुजरना पड़ता है, जहां हर पल सैकड़ों हाईवा ट्रक दौड़ते हैं। इससे बच्चों को जहां शारीरिक कष्ट झेलना पड़ता है, वहीं स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसे खांसी, सांस की दिक्कतें और एलर्जी की शिकायतें भी बढ़ रही हैं।
राजस्व में अग्रणी, सुविधा में पिछड़ा
बल्देवपुर वह गांव है जो पूरे जिले में गिट्टी खनन के चलते सबसे अधिक राजस्व देने वाले गांवों में से एक माना जाता है। यहां से निकलने वाली गिट्टी कवर्धा, दुर्ग, बेमेतरा समेत पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश तक सप्लाई होती है। यह गांव छत्तीसगढ़ के सड़क निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, फिर भी यहां की मूलभूत आवश्यकताओं की अनदेखी चौंकाने वाली है।
सरपंचों की उदासीनता बनी बड़ी बाधा
गांव के लोगों का कहना है कि पिछले कई वर्षों से कोई भी सरपंच इस तीन किलोमीटर लंबे कच्चे मार्ग के पक्कीकरण के लिए गंभीर नहीं रहा है। चुनाव के समय आश्वासन दिए जाते हैं, लेकिन बाद में यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला जाता है। ग्रामीणों की मांगों और बच्चों की पीड़ा को नजरअंदाज किया जाता रहा है।
धूलभरे संघर्ष का प्रतीक बना गांव
बल्देवपुर और उसके आसपास के ग्रामीण हर रोज खदानों से निकलने वाली धूल का सामना करते हैं। खेतों की उपज पर असर, घरों में घुसती धूल और सांस संबंधी रोग अब यहां आम बात हो गई है। इसके बावजूद न तो खनन कंपनियां और न ही प्रशासन इस गांव के विकास की ओर ध्यान दे रहे हैं।
राजस्व के अनुपात में विकास क्यों नहीं?
बल्देवपुर यह सवाल पूछता है कि जब गांव राज्य को करोड़ों का राजस्व देता है, तो बदले में उसे बुनियादी सुविधाएं क्यों नहीं मिल रही हैं? तीन किलोमीटर पक्की सड़क बनाना कोई बड़ी योजना नहीं, लेकिन इसके अभाव में यहां की पीड़ा बड़ी हो चुकी है।
प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से उम्मीदें
गांववासियों ने जिला प्रशासन, जनपद और पंचायत प्रतिनिधियों से बार-बार गुहार लगाई है, लेकिन आज तक सिर्फ आश्वासन ही मिले हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यदि अब भी उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया गया, तो वे आंदोलन का रास्ता अपनाने पर मजबूर होंगे।
विकास की असमान तस्वीर
बल्देवपुर की कहानी देश के उन सैकड़ों गांवों जैसी है जो संसाधनों से संपन्न हैं, लेकिन सुविधाओं से वंचित हैं। यह विकास की वह असमान तस्वीर है जिसमें जिनके कंधों पर पूरे राज्य का निर्माण टिका है, वही सबसे ज्यादा उपेक्षित हैं।
अब तो बनाओ हमारी सड़क
गांव के युवा, बुजुर्ग और महिलाएं अब एक ही मांग कर रहे हैं — “अब तो बनाओ हमारी सड़क।” यह मांग केवल कच्चे रास्ते को पक्के में बदलने की नहीं है, यह सम्मान, सुविधा और न्याय की मांग है। ग्रामीणों ने बताया कि बल्देवपुर की सड़क केवल गिट्टी का रास्ता नहीं, यह गांव के सपनों का रास्ता है। यदि शासन और प्रशासन ने अब भी नहीं सुना, तो यह केवल एक गांव की उपेक्षा नहीं, पूरे तंत्र की नाकामी मानी जाएगी।