जनपद पंचायत खैरागढ़ की सामान्य सभा का नज़ारा कुछ ऐसा था जैसे बारात आई हो और दूल्हा नदारद हो। सभा बुलायी गई थी विकास कार्यों की समीक्षा के लिए, लेकिन पीडब्लूडी, कृषि और पीएचई विभाग के अधिकारी शायद अपनी कुर्सियों को 'वर्क फ्रॉम होम' मोड पर छोड़ गए थे।
सदस्यों ने जब देखा कि मुख्य किरदार ही गायब हैं, तो उन्हें गुस्सा आ गया। गुस्सा आना भी स्वाभाविक था, आखिर इतनी मेहनत से कुरता-फुलपैंट पहनकर, समय पर पहुंचकर अगर सिर्फ खाली कुर्सियाँ देखने को मिलें, तो कोई भी क्षुब्ध हो जाएगा। किसी सदस्य ने फुसफुसाया, “कहीं ये लोग अदृश्य टोपी पहनकर तो नहीं आए ?” एक बुजुर्ग सदस्य बोले, “भाइयों, ये लोग सरकारी अधिकारी हैं, इनका दर्शन केवल विशेष अवसरों पर होता है, जैसे ट्रांसफर, प्रमोशन या निरीक्षण की अफवाह।”
सभा में प्रस्ताव रखा गया कि ऐसे 'लुप्तप्राय अधिकारियों' को नोटिस भेजा जाए। कुछ ने सुझाव दिया कि नोटिस में GPS ट्रैकर भी जोड़ा जाए, ताकि अगली बार अधिकारी 'कहां हैं' ये कम से कम पता तो चले।
अब भला अधिकारी आएंगे भी क्यों? अगर विकास की चर्चा हो रही हो, तो उन्हें क्या काम? वो तो कागज़ों में ही विकास करते हैं, जो जितना मोटा प्रोजेक्ट फाइल, उतना बड़ा काम।
सभा समाप्त हुई तो कुछ सदस्यों ने कहा, “अब अगली बार हम भी अनुपस्थित रहेंगे, ताकि अधिकारियों को लगे कि कोई उनको भी देखने वाला है।”
इसी को कहते हैं — "विकास की बैठक और विकास के ठेकेदार... दोनों ही मिसिंग !"