
दीक्षांत समारोह से पहले फिर उठी शिक्षा में हो सरगम की मांग
ख़ैरागढ़. 3 साल बाद होने जा रहे दीक्षांत समारोह और ख़ैरागढ़ महोत्सव को लेकर भारतीय कला व संगीत को समर्पित इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय एक बार फिर सज चुका है। और शिक्षा में हो सरगम की मांग एक बार फिर उठने लगी है। शिक्षा में हो सरगम अभियान के संयोजक भागवत शरण सिंह ने छत्तीसगढ़ शासन से इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के विषयों को छत्तीसगढ़ के स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम में स्थान देने की मांग की है। भागवत शरण सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय से हर वर्ष सैकड़ों की संख्या में स्नातक निकलते हैं। जिसमें सबसे ज्यादा संख्या हाल के दिनों में छत्तीशगढ़िया छात्रों की होती है। परंतु रोज़गार के नाम इन छात्रों के हाथ खाली ही रहते हैं। क्योंकि भले ही नई शिक्षा नीति में केंद्र सरकार ने कला शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया है। लेकिन छत्तीसगढ़ में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है। जिसकी वजह से विश्व विद्यालय से निकलने वाले छात्रों के पास रोज़गार की संभावनाएं शून्य रहती हैं। यदि शासन इस दिशा में पहल करती है तो न केवल स्नातकों के लिए शासन स्तर पर रोज़गार के द्वार खुलेंगें बल्कि छत्तीसगढ़िया छात्र भी कला शिक्षा से जुड़ेंगें।

साल 2011 से हो रही है मांग
शिक्षा में हो सरगम की मांग साल 2011 से की जा रही है। मांग को लेकर बकायदा हस्ताक्षर अभियान चलाया जा चुका है। बल्कि तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह,तत्कालीन राज्यपाल के.एम.सेठ,ई.एस.एल.नरसिम्हन से लेकर अलग - अलग जनप्रतिनिधियों तक बात पहुंचाई जा चुकी है। साथ ही ख़ैरागढ़ महोत्सव में दौरान भी छात्र इस मुद्दे को लेकर कभी अपनी आवाज़ बुलंद कर चुके हैं।

कुलपति करें पहल
भागवत शरण सिंह ने वर्तमान कुलपति पद्मश्री ममता चंद्राकर से मांग की है कि वे इस दिशा में पहल करें क्योंकि वे स्वयं में छत्तीसगढ़िया लोक कला की सशक्त हस्ताक्षर हैं। और लोक कलाकारों के समक्ष आने वाली परेशानियों को भली प्रकार से समझती हैं। यदि वे इस दिशा में पहल करती हैं तो निश्चित रूप से विवि के कलाकारों के लिए रोज़गार के द्वार खुलेंगें।
लोककला में सबसे ज्यादा स्थानीय छात्र
भागवत शरण सिंह ने कहा कि विवि में लोक संगीत व कला में सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ के छात्र रुचि लेते हैं। इसके बाद चित्रकला जैसे विषयों में भी उनकी रुचि रहती है। लेकिन लोक संगीत में स्नातक व स्नातकोत्तर करने के बाद इन छात्रों के पास रोज़गार के नाम पर हाथ खाली रहते हैं।

अभी केंद्रीय व नवोदय विद्यालय में होते हैं कला व संगीत के शिक्षक
भागवत शरण सिंह ने बताया कि अभी केंद्र पोषित शालाओं केंद्रीय विद्यालय व नवोदय विद्यालय में
बकायदा कला व संगीत शिक्षकों की नियुक्ति होती है। हालांकि उसमें छत्तीसगढ़िया छात्रों की संख्या न के बराबर होती है। यदि छत्तीसगढ़ के स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम में ये विषय शामिल होते हैं तो इन स्कूलों में बतौर शिक्षक यहाँ के छात्रों को नौकरी मिल सकेगी।
होंगें ये फायदे ..
00 छात्र चित्रकला, मूर्तिकला व लोक संगीत विषयों से जुड़ेंगें।
00 विवि के छात्र कलाकारों के लिए राज्य शासकीय सेवा के द्वार खुलेंगें।
00 विवि में स्थानीय छात्रों की संख्या बढ़ेगी।
00 बच्चे प्रारंभ से संगीत व कला में पारंगत होंगें।
