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कला अकादमी छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग और इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के सहयोग से कलाचर्या का आयोजन
खैरागढ़ 00 कला अकादमी छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग और इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के सहयोग से कलाचर्या का आयोजन शनिवार को विश्वविद्यालय के चित्रकला विभाग के सभागार में किया गया। शुरूआत में कला अकादमी के अध्यक्ष योगेंद्र त्रिपाठी ने अतिथियों व आगंतुकों का स्वागत करते हुए आयोजन के महत्व पर प्रकाश डाला। पहले सत्र की शुरूआत 'रविंद्र नाथ टैगोर की कला' पर केंद्रित व्याख्यान से हुई। जिसमें कलाकार एवं कला शिक्षक शमींद्र नाथ मजुमदार ने विश्वकवि रविंद्रनाथ टैगौर की पेंटिंग औऱ शैली से विद्यार्थियों को अवगत कराया।
उल्लेखनीय है कि रविंद्रभारती विश्वविद्यालय कोलकाता से कला के इतिहास पर स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त शमिंद्रनाथ मजुमदार ने 1988 से उनकी कृतियों की प्रदर्शनी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगती रही है। अब तक उन्हें राष्ट्रीय स्तर के तीन अवार्ड मिल चुके हैं।
अपने व्याख्यान में मजुमदार ने बताया किया रविंद्रनाथ ठाकुर नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद 67 साल की उम्र में चित्रकारी की तरफ मुड़े थे। विश्वकवि ने सरल, संक्षिप्त व स्पष्ट रेखाओं द्वारा आदि-मानव के समान ही चित्र-चित्रांकित किए। उन्होंने चित्रकला के क्षेत्र में किसी परम्परागत शैली को न अपनाते हुए संक्षिप्त रेखाओं व रंगों द्वारा अपनी अभिव्यक्ति की।
खचाखच भरे सभागार में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा अगर आप कॉपी (नकल) करते हैं तो आप बेहतर आर्टिस्ट नहीं हो सकते। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि आदिमानव ने गुफाओं में जो चित्र बनाए वो तो कहीं से भी नकल नहीं है। उन्होंने कहा कि चित्रकला के 30 हजार साल के इतिहास में कहीं कोई नकल नहीं दिखती है बल्कि हाल के 2-3 सौ साल में कॉपी का चलन बढ़ा है। इसके पीछे औपनिवेशिक दासता की मानसिकता जिम्मेदार है। विद्यार्थियों के एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कला के क्षेत्र में संगीत का घराना होता है लेकिन पेटिंग का कोई घराना नही होता। क्योंकि यह कला आपके अंदर से स्वयं आती है।
इसके उपरांत 'मनुष्य के साथ मूर्ति कला का संबंध' विषय पर कलाकार एवं कला शिक्षक मयूर कैलाश गुप्ता ने विद्यार्थियों के बीच अपनी बात रखी। उन्होंने एलोरा गुफा में निर्मित कैलाश मंदिर के त्रिआयामी स्वरूप के उदाहरण के साथ समझाया कि कैसे मनुष्यता ने मूर्तिकला को विकसित किया। उन्होंने कहा कि कैलाश मंदिर वास्तु और स्थापत्य कला का अनूठा नमूना है।
उल्लेखनीय है कि एमएस यूनिवर्सिटी बड़ोदा से क्रियेटिव स्क्ल्पचर की पढ़ाई करने वाले मयूर गुप्ता के बनाए स्क्ल्पचर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित प्रदर्शनियों का हिस्सा रहे हैं। उन्हें प्रतिष्ठित चार्ल्स वैलेस इंडिया ट्रस्ट अवार्ड यूके मिल चुका है।
उन्होंने विद्यार्थियो से चर्चा करते हुए कहा बताया कि अपने आसपास का माहौल देख कर कैसे पेंटिंग कला को विकसित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम आपको रास्ता बता सकते हैं। लेकिन आपके अंदर जो है, वही एक तरीका है सिर्फ देखने का समझने का। हम जो सोच लेते हैं तो जरूरी नही वही हो जाए। इसलिए अपने आसपास का अवलोकन कीजिए। आप सुबह-दोपहर शाम अलग-अलग मौसम में एक ही पेड़ को देखिए। किस तरह उसका रंग-रुप बदलता जाता है। इसे सूक्ष्मता से देखेंगे तो आपको सब कुछ मिल जाएगा। इस दौरान विद्यार्थियो ने अपन विषय से संदर्भित प्रश्न भी पूछे, जिसका अतिथि वक्ताओं ने जवाब दिया। समूचे कार्यक्रम का संचालन इतिहास विभाग अध्यक्ष कपिल वर्मा और हिन्दी विभाग अध्यक्ष राजेन्द्र यादव ने किया। इस दौरान मूर्ति कला विभाग के अध्यक्ष छगेंद्र उसेंडी,चित्रकला विभाग के अध्यक्ष विकास चंद्र, ग्राफिक विभाग के अध्यक्ष रवि नारायण गुप्ता और संदीप किंडो सहित 700 से ज्यादा विद्यार्थीगण उपस्थित थे।