नवरात्रि के पावन पर्व पर लिखी गई यह कविता आप सभी के मन को मोह लेने वाली है बहुत ही सुन्दर कविता को अपनी कलम से पूर्णिमा कौशिक (सहायक प्राध्यापक) द्वारा लिखा गया है।
*हां एक औरत हूं मैं....*
दिलों में बस जाए ,वो मोहब्बत की मूरत हूं मैं,
कभी बहन ,कभी ममता की मूरत हूं मैं ।
मेरे आंचल में है ,वो चांद सितारे,
मां के कदमों में बसी ,एक जन्नत हूं मैं ।
हर दर्द -ओ -गम ,को छुपा लिया सीने में,
लब पे ना आए ,कभी वो हसरत हूं मैं ।
मेरे होने से ही है, यह कायनात जवा है,
जिंदगी की बेहद , हसीन हकीकत हूं मैं ।
हर रंग रूप में , ढल कर संवर जाऊं मैं,
सब्र की मिसाल, हर रिश्ते की ताकत हूं मैं ।
अपने हौसलों से, तकदीर को बदल दूं मैं ,
सुन ले ऐ दुनियां, हां एक औरत हूं मैं... हां एक औरत हूं मैं ।