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आप किसी की मदद करना चाहते हैं तो धन या पद से ज्यादा जरूरी है दृढ़ इच्छा शक्ति। खैरागढ़ डाइट के शिक्षक सुनील शर्मा और इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के समयपाल अमित सिंह ने इसी की मिसाल पेश की है।
नियाव@खैरागढ़
मानवीय संवेदनाएं मरी नहीं हैं। अगर ऐसा होता तो बिछड़े बेटे के लिए तड़प रहे बूढ़े मां-बाप 38 साल के मंदबुद्धि युवक से आज मिल नहीं पाते। वे मिल पाए डाइट के शिक्षक सुनील शर्मा और समयपाल अमित सिंह की बदौलत। फटे-पुराने कपड़ों में भटक रहे चमन (युवक का नाम) पर जब उनकी नजर पड़ी तो दिल पसीज गया। पांच सालों तक उसकी भूख मिटाई। तन ढंकने को कपड़े दिए। जब बीमार पड़ा तो इलाज कराया। एक माह बाद ठीक हुआ तो उसके घर की तलाश में जुट गए।
पता चला कि वह बालाघाट वारासिवनी के पास कटंगी गांव का रहने वाला है। पिता का नाम है चंपा नेवारे। दो कमरे का मकान है। मजदूरी कर पेट पालते हैं। सुनील और अमित ने किराए की गाड़ी की। और 25 जनवरी की सुबह स्वीपर सुनील कुमार डग्गर के साथ उसे रवाना कर दिया। शाम तकरीबन साढ़े 6 बजे वे कटंगी पहुंचे। जहां दो कमरे के कच्चे मकान की दहलीज ताकती बूढ़ी मां बेटे को देखते ही फफक पड़ी। आंसू रोके न रुके। पड़ोसियों ने उसे घेर लिया। उसने भी उन्हें पहचान लिया। मां ने पूछा- खाना खाएगा। जवाब में हां सुनते ही थाली में दाल-चावल ले आई और एक-एक निवाला बड़े प्यार से खिलाया।
पांच साल से पाल रहे थे गरीब का पेट / लगभग पांच साल पहले आया था चमन। अंबेडकर चौक से विश्वविद्यालय के आसपास ही था ठिकाना। उसकी हालत देख सुनील से रहा नहीं गया। उन्होंने पास के ही एक होटल में चमन के लिए रोज के नाश्ते का इंतजाम कर दिया। सुबह पेटभर नाश्ता करने के बाद दिनभर इधर-उधर की सैर में खाना भी मिल ही जाता। जिंदगी कटने लगी। फिर तो चमन ने खैरागढ़ नहीं छोड़ा।
सिर पर लगी चोट तब अस्पताल में कराया भर्ती / एक माह पहले कुछ असामाजिक तत्वों ने चमन से मारपीट की। सिर पर गहरी चोट लगी। वह लकवाग्रस्त भी हो गया था। चल-फिर नहीं पा रहा था। तब सुनील ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया। अमित ने उसकी सफाई के लिए स्वीपर सुनील कुमार डग्गर और कन्हैया कुमार नारवल की ड्यूटी लगा दी। सिविल अस्पताल में डॉ. विवेक बिसेन ने व्यवस्था की और इलाज शुरू किया।
पुलिस की मदद से मिला चमन के घर का पता / उपचार के दौरान ही सुनील के कहने पर डॉ. बिसेन ने खैरागढ़ पुलिस की मदद से लांजी-बालाघाट पुलिस से संपर्क साधा। पुलिस ने उसके माता-पिता को ढूंढ निकाला। उनसे फोन पर बात हुई। चमन के पिता चंपा नेवारे ने कहा- रुपए का इंतजाम कर वे दो दिनों में बेटे को लेने आएंगे। ये बात अमित को खटकी। उन्होंने कहा- चिंता न करें। हम गाड़ी से उसे भेज रहे हैं।
मां बोली- घर बेचकर कराउंगी बेटे का इलाज / चमन को उसके गांव लेकर पहुंचे डग्गर ने बताया कि बेटे को व्हील चेयर में देख मां चीख पड़ी, मैं घर बेचकर कराउंगी अपने बेटे का इलाज। घर में घी है। आज पराठा बनाऊंगी। पड़ोसियों ने बताया कि चमन से बड़ा एक और बेटा भी है, जो मां-बाप को छोड़ चुका है। नागपुर में रहता है। चमन चाहे जैसा भी हो लेकिन उसके आने से इन्हें औलाद का सुख मिलेगा।
चमन की हालत देख इन्होंने की उसकी मदद
कई लोगों ने दिया सहारा / सुनील एक शिक्षक हैं और भागवताचार्य भी। वे कह रहे कि चमन को मैंने ही नहीं खैरागढ़ के कई लोगों ने सहारा दिया। खाना-कपड़ा सबकुछ दिया। एक माह पहले तक तो वह चल-फिर रहा था। पता नहीं अचानक क्या हुआ। अब वह अपने माता-पिता के पास पहुंच चुका है।
मैं तो केवल माध्यम बना / संगीत विश्वविद्यालय के समयपाल अमित सिंह बोले- सच पूछिए तो मैं तो केवल माध्यम बना। डग्गर और कन्हैया ने उसकी असली सेवा की। कुछ साल पहले उसके पिता डोंगरगढ़ तक आए थे, लेकिन चमन जाने को तैयार नहीं हुआ। अच्छी बात ये है कि बूढ़े मां-बाप को उनका बेटा मिल गया।
बिलासपुर के एक और विक्षिप्त को भेजने की तैयारी / चमन को घर भेजने में सुनील-अमित के साथ दिनेश गुप्ता, आलोक श्रीवास, नरेंद्र श्रीवास, चैतेंद्र तिवारी और किशोर सिंह ने भी अपनी भूमिका निभाई। नरेंद्र का कहना है कि बिलासपुर से आया एक और विक्षिप्त नगर में घूम रहा है। उसके घर की तलाश भी जारी है। जल्द ही उसे भी उसके परिजनों से मिलवाने की कोशिश है।
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