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ख़ैरागढ़ 00 अवैध शराब के मामले में प्रशासनिक मिलीभगत सामने आने के बावजूद अब तक कोई बड़ी कार्यवाही सामने नहीं आई है। सरकारी शराब दुकान के आधा दर्जन कर्मचारियों को महज इसलिए नौकरी से निकाल दिया गया,क्योंकि उन्होंने अवैध शराब की बिक्री और अधिक कीमत में शराब बेचकर अपने अधिकारियों को पैसा नहीं पहुंचाया। कर्मचारियों पर हर महीने करीब 40 हजार रुपए पहुँचाने का दबाव था। कर्मचारियों ने परेशान होकर दबाव के विरुद्ध आवाज उठाई। शराब दुकान बंद करने का हवाला अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर गरीब स्थानीय लोगों को नौकरी से बेदखल कर दिया। नौकरी गंवाने के बाद कलेक्टर डॉ. जगदीश कुमार सोनकर से इसकी शिकायत की। जांच के आदेश हुए। पर परिणाम आज तक नहीं आया।
सुपरवाइजर जा चुका है सलाखों के पीछे
क्षेत्र में अवैध शराब की बिक्री में आबकारी विभाग की भूमिका और शराब दुकान संचालन करने वाली प्लेसमेंट एजेंसी की मिलीभगत है। इसके बगैर शराब की तस्करी या अवैध बिक्री संभव नहीं है। हाल ही में धरमपुरा शराब दुकान से ही 8 पेटी शराब कोचिए को भेजे जाने के आरोप में सुपरवाईजर सलाखों में कैद हो चुका है। उसके बाद भी आबकारी विभाग आंख मूंदे बैठा है। यही नहीं जिला प्रशासन ने इस गंभीर मामले में किसी पर जवाबदेही तय नहीं की है।
महुआ बनाने वालों पर होती है कार्यवाही
आबकारी विभाग के पास शराब की अधिक बिक्री कर राजस्व एकत्रित करने व अवैध शराब की बिक्री को रोके जाने की जवाबदारी है। लेकिन विभाग महुआ शराब बनाने वाले गरीब और वनांचल के लोगों पर ही कार्रवाई कर अपने कर्तव्यों की रस्म अदायगी कर रही है। जबकि पुलिस देशी शराब तस्करों पर आए दिन कार्रवाई कर रही है। तमाम कार्रवाईयों के बाद भी क्षेत्र में अवैध शराब की बिक्री जारी है।
ठेलों और खोमचों में बिक रहा शराब
सूत्रों के मुताबिक शहर ही नहीं गांवों में भी ठेलों और खोमचों में देसी शराब शराब आसानी से उपलब्ध है। होटलों और ढाबों के संचालक बेखौफ होकर अवैध तरीके से शराब पीला रहे हैं। बावजूद इसके कार्रवाई शून्य है। अवैध शराब के इस काले धंधे के तार कहीं न कहीं आबकारी विभाग और सरकारी शराब दुकान से जुड़े हुए हैं! वहीं बड़े स्तर पर भी इन काले कारनामों को मौन स्वीकृति मिली हुई है। शराब दुकान में जिन कर्मचारियों ने अवैध उगाही और शराब बिक्री के गंदे खेल से खुद को दूर करने की कोशिश की, उन्हें अपनी नौकरी गंवानी पड़ रही है।