खैरागढ़. जिला निर्माण को लेकर ख़ैरागढ़ का संघर्ष आज का नहीं है। तमाम राजनीतिक प्रभावों के बावजूद तत्कालीन दुर्ग जिले की 6 तहसीलों में शामिल ख़ैरागढ़ का जिला न बनना हमेशा से आम लोगों में कसक का कारण था। साल 2012-13 में जिला निर्माण का पहला आंदोलनकारी बिगुल फूंका गया। जिला निर्माण समिति के बैनर तले 7 दिन का चरण बद्ध आंदोलन किया गया। पत्रकार संघ ख़ैरागढ़ के अध्यक्ष भागवत शरण सिंह के संयोजन में तब पत्रकार संघ,अधिवक्ता संघ, व्यापारी संघ सहित अन्य संगठन एक मंच पर आए। तब प्रदेश में डॉ. रमन सिंह की सरकार थी। पहले दिन महाबंद बुलाया गया। दूसरे दिन दंतेश्वरी मंदिर से मशाल यात्रा निकाली गई। तीसरे दिन हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। चौथे दिन पोस्ट कार्ड अभियान चलाया गया। पांचवें दिन अमलीपारा से शिशु मंदिर तक मानव श्रृंखला बनाई गई। छठवें दिन गोल बाज़ार में खुला मंच का आयोजन किया गया। सातवें दिन से अंबेडकर चौंक व जय स्तंभ चौंक में अनवरत मशाल जलाने का निर्णय लिया गया। तब पत्रकार संघ का कार्यालय आज के राजीव मितान क्लब में ही था। आंदोलन में वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ युवा अधिवक्ताओं सर्वेश ओसवाल,सुप्रीत सिंह,सुरेश भट्ट, नीरज झा,सुबोध पांडे, राजीव चंद्राकर,संदीप दास ने भी हिस्सा लिया। पार्टी लाइन से परे जाकर तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष विक्रांत सिंह भी मशाल रैली सहित अन्य गतिविधियों में शामिल रहे।
विक्रांत की अगुवाई में पूर्व सीएम रमन से मिला था प्रतिनिधिमंडल
जिला निर्माण की मांग को लेकर सीएम हाउस घेराव के दौरान नारेबाजी करते आंदोलनकारी प्रशासन तंत्र के माध्यम से आंदोलन राज्य सरकार तक पहुंचा। फिर तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष विक्रांत सिंह की पहल पर अधिवक्ता संघ का प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह से मिला। संघ संरक्षक और लंबे समय से जिले स्वप्न दृष्ट्या ठाकुर सुभाष सिंह,कमलकांत पांडे, गौतम चंद जैन,पंडित मिहिर झा,स्व.महेश ठाकुर, स्व.किशोर सिंह सहित अन्य ने डॉ.रमन को जिला निर्माण के विचार से अवगत कराया।जिला निर्माण की मांग को लेकर बनाई मानव श्रंखला, जिसमें नगर की बेटियों ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। ठाकुर सुभाष सिंह ने ख़ैरागढ़ के गौरवशाली इतिहास से सीएम को अवगत भी कराया था। डॉ. रमन सिंह के आश्वासन के बाद प्रतिनिधि मंडल लौटा था।
तात्कालिक असहमति जताकर संघ से खुद को किया था अलग
भागवत शरण सिंह व पत्रकार संघ ने इस मुलाकात से तत्कालिक रूप से असहमति जताते हुए स्वयं को तटस्थ कर लिया। वे सभी आंदोलन को चलाने के पक्षधर थे। जिसके बाद आंदोलन शिथिल हो गया। पर गाहे-बगाहे जिला निर्माण की मांग उठती रही। पत्रकार चेतेंद्र तिवारी,अनुराग तुरे,खिलेंद्र नामदेव,जितेंद्र यादव सहित अन्य सभी इस आंदोलन का हिस्सा बने।
मिहिर ने पुनर्जीवित किया आंदोलन
दूसरी बार इस आंदोलन को पुनर्जीवित किया अधिवक्ता पंडित मिहिर झा ने जिसमें उनका साथ दिया वरिष्ठ पत्रकार अनुराग तुरे ने जिसमें सुबोध पांडे,दिलीप श्रीवास्तव सहित अन्य ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। जय स्तंभ चौक में हवन आदि का आयोजन किया गया। पर यह आंदोलन भी कुछ दिनों बाद ठंडा पड़ गया। और खैरागढ़ जिला सपना ही रह गया। एसडीएम कार्यालय के सामने धरना दिया गया। जिसमें ठाकुर सुभाष सिंह, मिहिर झा,महेश ठाकुर,भागवत शरण सिंह,अनुराग तुरे अन्य सभी ने जिला निर्माण के संबंध में आवाज़ बुलंद की।

बाज़ार अतरिया में हुई झड़प
तीसरी बार फिर यह आंदोलन पुनर्जीवित हुआ। जिसमें लगभग सभी शामिल हुए। इस बार जिला निर्माण संघर्ष समिति के गठन हुआ। जिसमें सभी सहभागी बनें। अग्रणी भूमिका मिहिर झा ने निभाई। जिसमें सुबोध पांडे, मारुति शास्त्री,शिरीष मिश्रा,खलील कुरैशी,शमशुल होदा खान,सूरज देवांगन सहित अन्य के साथ पूर्व के समस्त आंदोलनकारी शामिल हुए। जिन्हें बाज़ार अतरिया में पुलिस ने मुख्यमंत्री निवास जाने से पहले ही रोक दिया। पुलिस और आंदोलनकारियो के बीच हल्की झड़प भी हुई।

नरेंद्र,राजू की अगुवाई में लंबा चला भूख हड़ताल
इस आंदोलन के पैरलर राजपरिवार के दामाद नरेंद्र सोनी, पूर्व छात्र नेता राजू यदु, उत्तम बागड़े, समसूल होदा खान, महेश बंजारे, राजकुमार बोरकर, संदीप ठाकुर, हेमू साहू, मनहरण देवांगन ने भी जिला निर्माण की मांग को लेकर हड़ताल किया। हालांकि नरेंद्र सोनी ने पूर्व आंदोलनों से इतर ख़ैरागढ़ - छुईखदान-गंडई जिला निर्माण की मांग कर दिया और वहीं से संयुक्त जिला की मांग उठने लगी। इस संगठन ने छह महीने से अधिक समय तक भूख हड़ताल किया जो खैरागढ़ के इतिहास का सबसे बड़ा भूख हड़ताल साबित हुआ।

जिला केसीजी निर्माण भूख हड़ताल में आंदोलनकारियों के साथ बैठे भाजपा नेता
इस आंदोलन से छुईखदान गंडई का कनेक्शन नया नहीं है। पहले आंदोलन को गंडई के प्रखर राजनीतिक व्यक्तित्व अश्विनी ताम्रकार ने खुला समर्थन दिया। जिसमें किसान मजदूर संघ के बैनर तले हेमंत शर्मा, शीतल जैन, रावल कोचर सहित अन्य भी शामिल रहे। बीते दो आंदोलनों में गंडई के भाजपा नेता ख़म्मन ताम्रकार भी शामिल रहे।