The RAGNEETI is periodical magazine and the news portal of central India with the political tone and the noise of issues. Everything is in this RAGNEETI. info@ragneeti.co.in
Owner/Director : Bhagwat Sharan Singh
Office Address : New Bus Stand, Shiv Mandir Road, Khairagarh. C.G
खैरागढ. गर्वित फाउंडेशन रायपुर द्वारा 9 अगस्त को साहू भवन, सोनेसरार, खैरागढ़ में विश्व मूलनिवासी दिवस मनाया गया. मुख्य वक्ता के रूप में जिला पंचायत सभापति विप्लव साहू, गर्वित फाउंडेशन के अध्यक्ष विजय लहरे, एड. एस आर वर्मा और श्रीमती पिंकी ठाकुर मौजूद रहे. वक्ताओं ने बताया कि अंग्रेजों से भारत की आजादी के बाद अनुसूचित जाति जनजाति के लिए विशेष प्रावधान संविधान में निहित किया गया और उनकी विकास की कुछ योजनाएं भी बनी लेकिन शासकों और प्रशासकों द्वारा इमानदारी से जमीन पर नहीं उतारा गया. जिसका असर यह देखने को मिलता है कि शेड्यूल कास्ट शेड्यूल ट्राइब और अन्य पिछड़े वर्ग समानता की दौड़ में बहुत पीछे हो गए हैं. इसके जड़ में आसमान और गुणवत्ता विहीन शिक्षा के साथ अवसरों की कमी का होना है. अभी भी केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों को मनुष्य की आधारभूत शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए. संवैधानिक प्रावधान के अनुरूप अनुसूचित जाति और जनजाति के ओबीसी के जो लोग शासकीय सेवाओं में आए, उन्होंने अपने आपको समाज से दूर कर लिया और नकली मान-सम्मान के साथ स्वार्थी हो गए. आज हालत यह है कि उनके बच्चे सरकारी स्कूलों में दिखते ही नहीं हैं, वे प्राइवेट स्कूलों, बड़े-बड़े निजी शिक्षण संस्थानों में अध्ययन करते दिखाई देते हैं. और जब तक शासकीय सेवक ही अपने बच्चों को शासकीय स्कूल में एडमिशन नहीं कराएंगे, यह व्यवस्था सुधरेगी नहीं. शासकीय सेवकों के साथ-साथ शासन को भी बहुत निष्ठा के साथ शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए बहुत गहरे प्रयास करने होंगे. ऐसा नहीं है कि दुनिया के देश और भारत में इनके उदाहरण नहीं है. नार्वे, स्वीडन के साथ-साथ भारत में ही केरल और दिल्ली ने शिक्षा स्तर पर बहुत मेहनत की है, और शानदार नतीजे लाए हैं. सरकार द्वारा शासकीय सेवकों को अनिवार्य रूप से आदेश जारी किया जाना चाहिए कि वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में अध्ययन कराएं. ताकि उसके साथ सरकारी स्कूलों की व्यवस्था ठीक होगी. कुछ वर्ष पूर्व कबीरधाम कलेक्टर ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में एडमिशन कराया था और स्कूल की व्यवस्था भी शानदार हो पाई थी. शायद कोई परंपरा और बुराइयां इसलिए ठीक नहीं होती, कि उनको तोड़ने वाले को उदाहरण कम मिलते हैं. हम सबको बहुत जुनून के साथ इस विषय में लगना चाहिए।