उत्पादन बढ़ा, रासायनिक उर्वरक घटा खर्च
खैरागढ़ की मनोहर गौशाला द्वारा गोमूत्र से बनाया जाता है फसल अमृत
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्याल रायपुर में हुए प्रयोगों से प्रमाणित हुए इसके लाभ
ख़ैरागढ़ 00 इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में किए गए प्रयोगों से यह साबित हुआ है कि मनोहर गौशाला खैरागढ़ में गौमूत्र से निर्मित फसल अमृत के प्रयोग से फसल उत्पादन बढ़ाया जा सकता है और रासायनिक उर्वरक का खर्च कम किया जा सकता है।
विश्वविद्यालय की अनुसंधान सेवाओं के निदेशक के मुताबिक-मनोहर गौशाला कमलाबाई कन्हैयालाल डाकलला चैरिटेबल ट्रस्ट खैरागढ़ के मैनेजिंग ट्रस्टी अखिल जैन ने अपनी गौशाला में गोमूत्र से निर्मित फसल अमृत के अलग अलग फसलों पर प्रयोग के लिए संपर्क किया था। इन प्रयोगों के निष्कर्ष इस प्रकार हैं- भिंडी पर इसका प्रभाव: इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के मृदा विज्ञान व कृषि रसायन विभाग ने रबी सीजन 2022-23 में भिंडी की फसल पर इसका इस्तेमाल किया। इस पर उर्वरक की निर्धारित मात्रा (N:K:P 120:60:60 क्विंटल/हेक्टेयर ) के साथ फसल अमृत के 10 प्रतिशत घोल का छिड़काव किया। पहला छिड़काव बोनी के 40-45 दिन बाद किया गया। दूसरा छिड़काव 60-65 दिन और तीसरा 80-85 दिन बाद किया गया। जिस फसल में सिर्फ उर्वरक की निर्धारित मात्रा डाली गई थी उसमें उत्पादन 132.36 क्विंटल/ हेक्टेयर रहा। जिस फसल पर साथ में फसल अमृत का भी प्रयोग किया गया उसमें उत्पादन 148.19 क्विंटल/हेक्टेयर रहा। यानी उत्पादन 12 प्रतिशत बढ़ गया।
चावल पर प्रभाव: विभाग द्वारा कन्हार और मटासी जमीन पर गर्मी की धान फसल पर फसल अमृत का प्रयोग किया गया। उर्वरक की निर्धारित मात्रा (N:K:P 90:45:30 kg/ha) के 75 प्रतिशत के साथ फसल अमृत का प्रयोग किया गया। रोपा के समय फसल अमृत का 40ml/L छिड़काव किया गया। फिर 30-35 दिन और 50-55 दिन के बाद 10 प्रतिशत फसल अमृत का छिड़काव किया गया।
निर्धारित मात्रा के 75 प्रतिशत उर्वरक और फसल अमृत के छिड़काव पर कन्हार और मटासी में क्रमश: 54.49 और 44.89 क्विं./हे. उत्पादन मिला। वहीं उर्वरक की निर्धारित मात्रा का सौ फीसदी इस्तेमाल करने पर उत्पादन क्रमश: 54.64 और 44.65 क्विंटल/हे. मिला। निष्कर्ष यह निकला कि फसल अमृत के प्रयोग से गर्मी के धान में रासायनिक खाद पर खर्च 25 प्रतिशत तक बचाया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खेती में यूरिया के बढ़ते उपयोग पर चिंता जाहिर कर चुके हैं। उनका मानना है कि यूरिया के अधिक उपयोग से मिट्टी और पानी पर विपरीत असर हो रहा है। मानव स्वास्थ्य पर भी इसका विपरीत असर हो रहा है। हमारी आने वाली पीढि़यों का स्वास्थ्य सुरक्षित रहे इसके लिए गांव गांव में किसानों को समझाने की जरूरत है कि वे यूरिया का प्रयोग कम करें।