The RAGNEETI is periodical magazine and the news portal of central India with the political tone and the noise of issues. Everything is in this RAGNEETI. info@ragneeti.co.in
Owner/Director : Bhagwat Sharan Singh
Office Address : New Bus Stand, Shiv Mandir Road, Khairagarh. C.G
ख़ैरागढ़ 00 नवरात्र के नौ दिनों में नवगठित जिले के गांवों से लेकर शहर के छोटे छोटे मोहल्लों में माँ जगदम्बा के अलग - अलग रूप विराजमान हैं। मुख्य मार्ग पटेल पारा में मां शाकम्भरी रूप में विराजमान हैं। संभवतः प्रदेश ख़ैरागढ़ में ही माँ शाकम्भरी की पूजा अर्चना पूरे विधि विधान से की जाती है। दरअसल,मान्यताओं के अनुसार माँ शाकम्भरी सब्जियों की देवी हैं। इसलिए उन्हें नौ दिनों तक नित्य हरी सब्जियों का ही भोग लगाया जाता है। देवी पुराण,शिव पुराण और धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार हिरण्याक्ष के वंश मे एक महादैत्य रूरु था। रूरु का एक पुत्र हुआ दुर्गम। दुर्गमासुर ने ब्रह्मा जी की तपस्या करके चारों वेदों को अपने अधीन कर लिया। वेदों के ना रहने से समस्त क्रियाएँ लुप्त हो गयी। ब्राह्मणों ने अपना धर्म त्याग कर दिया। चौतरफा हाहाकार मच गया। ब्राह्मणों के धर्म विहीन होने से यज्ञादि अनुष्ठान बंद हो गये और देवताओं की शक्ति भी क्षीण होने लगी। जिसके कारण एक भयंकर अकाल पड़ा। किसी भी प्राणी को जल नही मिला जल के अभाव मे वनस्पति भी सूख गयी। अतः भूख और प्यास से समस्त जीव मरने लगे। दुर्गमासुर की देवों से भयंकर लडाई हुई। जिसमें देवताओं की हार हुई। अत: दुर्गमासुर के अत्याचारों से पीडि़त देवतागण शिवालिक पर्वतमालाओं में छिप गये। तथा जगदम्बा का ध्यान, जप,पुजन और स्तुति करने लगे । उनके द्वारा जगदम्बा की स्तुति करने पर महामाया माँ पार्वती जो महेशानी,भुवनेश्वरि नामों से प्रसिद्ध है आयोनिजा(जिसके कोई माता-पिता ना हो) रूप मे पर प्रकट हुई।
शरीर से प्रकट हुए शाक
समस्त सृष्टि की दुर्दशा देख जगदम्बा का ह्रदय पसीज गया और उनकी आंखों से आंसुओं की धारा प्रवाहित होने लगी। माँ के शरीर पर सौं नैत्र प्रकट हुए। शत नैना देवी की कृपा से संसार मे महान वृष्टि हुई और नदी- तालाब जल से भर गये। देवताओं ने उस समय माँ की शताक्षी देवी नाम से आराधना की। शताक्षी देवी ने एक दिव्य सौम्य स्वरूप धारण किया। चतुर्भुजी माँ कमलासन पर विराजमान थी। अपने हाथों मे कमल, बाण, शाक- फल और एक तेजस्वी धनुष धारण किये हुए थी। भगवती परमेश्वरी ने अपने शरीर से अनेकों शाक प्रकट किये। जिनको खाकर संसार की क्षुधा शांत हुई।
दुर्गामासुर के साथ हुआ मां शाकम्भरी का युद्ध
माता ने पहाड़ पर दृष्टि डाली तो सर्वप्रथम सराल नामक कंदमूल की उत्पत्ति हुई । इसी दिव्य रूप में माँ शाकम्भरी देवी के नाम से पूजित हुई। तत्पश्चात् वह दुर्गमासुर को रिझाने के लिये सुंदर रूप धारण कर शिवालिक पहाड़ी पर आसन लगाकर बैठ गयीं। जब असुरों ने पहाड़ी पर बैठी जगदम्बा को देखा तो उनकों पकडने के विचार से आये। स्वयं दुर्गमासुर भी आया तब देवी ने पृथ्वी और स्वर्ग के बाहर एक घेरा बना दिया और स्वयं उसके बाहर खडी हो गयी। दुर्गमासुर के साथ देवी का घोर युद्ध हुआ अंत मे दुर्गमासुर मारा गया।
रखते हैं शुद्धता का ध्यान
मां शाकम्भरी सेवा समिति के महेश पटेल,मनीष पटेल सहित अन्य ने बताया कि नौ दिनों तक मां शाकम्भरी का पूजन किया जाता है। जिसमें शुद्धता का पूरा ध्यान रखा जाता है। इस दौरान समिति के सदस्य भी पूरी श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करते हैं।