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खैरागढ़. रविवार को ठाकुर पारा वार्ड नंबर 5 के सहयोग से पिपरिया नदी के किनारे मिनी गार्डन के मंच में प्रेमचंद जयंती मास के चलते खैरागढ़ पाठक मंच के तत्वावधान में प्रेमचंद जयंती 2021 संपन्न हुआ । इस अवसर पर डाॅ. जीवन यदु ने कहा कि जब व्यवस्था कोई कानून बनाती है ,उससे पहले उसके लिए वातावरण बनाती है । इस बात को प्रेमचंद जी 1914 के पहले पहचान गये थे । यह कहानी 1914 में 'प्रेम पच्चीसी' में संकलित है,जो उर्दू में है । हिन्दी में 1925 में प्रकाशित हुई । राजनीति और जनता से आगे चलने वाला लेखक होता है ,तभी तो गाँधी जी 1930 में दांडी यात्रा की। उस समय कांग्रेस के नरम दल के समझौतावादी प्रभाव को इस कहानी में देखा जा सकता है । बाद तिलक और गांधी जी से प्रभावित होते हुए रुसी क्रांति को आत्मसात किया। यह उनके बाद के कहानियों में देखा जा सकता है ।
9 साल पहले लिखी कहानी आज भी प्रांसगिक
विनयशरण सिंह ने कहा कि सौ साल पहले लिखी गई कहानी 'नमक का दरोगा' आज भी प्रासंगिक है क्योंकि आज भी हमारे समाज में पं.अलोपीदीन जैसे लोग हैं जिनके ऊँगलियों में न्याय व्यवस्था और सत्ता है तो दूसरी तरफ बंशीधर जैसे लोग जो उनके विचारों में खड़े हैं । बहुत से लोगों सुन रखा था कि पूराना समय-अंग्रेजों का समय अच्छा था। इस कहानी में पाते हैं भ्रष्टाचार तो उस समय भी अपनी चरम सीमा में था। 1914 के आसपास भी धन-बल का इतना प्रभाव था कि अपराध करके अपराधी बेइज्जत बरी हो जाता था, यह आज भी हो रहा है । कहानी का दुखद पहलू बंशीधर का सस्पैंड होना है । महान रचनाकार की यही पहचान है कि 2021 में भी उनके कैरेक्टर है और गाँधीवाद के प्रभाव के बाद भी अपने समय को जीया ही नहीं भविष्य को भी जीया।
मूल आवश्यकता को प्राप्त करने टैक्स देना पड़ता है
डाॅ. नत्थू तोड़े ने कहा की मनुष्य की मूल आवश्यकता को प्राप्त करने लिए टेक्स देना पड़ता है, उस पीड़ा को व्यक्त इस कहानी में किया है जिसे हम अभी कोरोना काल में भोगे है । आक्सीजन की कितनी कालाबाजारी और मारा-मारी हुई।
ईमानदारी और बेईमानी की कहानी
अनुराग तुरे ने कहा कि यह कहानी ईमानदारी-बईमानी की कहानी है जिसमें बईमानी के उपर ईमानदारी श्रेष्ठ बताया गया है। श्री प्रशांत सहारे ने कहा कि प्रेमचंद जी महिला-दलित और समकालीन कहानी चित्रण के लिए जाने जाते हैं। 'नमक का दरोगा ' से यह पता चलता है कि बईमान व्यक्ति भी ईमानदार व्यक्ति को पसंद करता है और प्रशासनिक बुराइयों को सामने लाने का साहसिक कार्य प्रेमचंद जी ने किया है।
परिवेश से मेल खाती कहानी
पीताम्बर सिंह राजपूत ने कहा कि 'नमक का दरोगा' आज के परिवेश से मेल खाती कहानी है, जबकि इसे स्वतंत्रता आन्दोलन के समय लिखा गया है और हम जिसे आज की बुराई भ्रष्टाचार समझते हैं , उसको उनके समय में भी पाते हैं।श्री संजीव ध्रुवे ने कहा कि समाज को आईना दिखाती नमक का दरोगा कहानी है । राजू दास मानिकपुरी ने कहा कि वर्तमान और परतंत्रता काल से जोड़ती नमक का दरोगा कहानी है ।
भविष्य की विभत्स घटनाओं को हम आज झेल रहे हैं
ज्ञानेश्वर यादव ने कहा कि यह कालजयी रचना भविष्य की वीभत्स घटनाओं को समेटे हुए है ,जिसे आज हम भोग रहे हैं।बलराम यादव ने कहा कि मानव के जीवन में नमक का बहुत महत्व है । नमक को लेकर नमक हलाली-नमक हरामी व्यहृत शब्द आए,। यह कहानी नमक हलाली-नमक हरामी को अभिव्यंजित करती कहानी है ।
संकल्प यदु ने नमक का दरोगा से अपना परिचय देते हुए, अभी कोरोना काल में दिवंगत हुए डॉ. गोरेलाल चंदेल जी को अपना व्यक्तव्य को समर्पित करते हुए कहा कि नमक का दरोगा को पढ़ते हुए स्वतंत्रता आन्दोलन काल महसूस करते है। इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति हुई और उसके साथ पूँजीवाद । अंग्रेज़ जहाँ -जहाँ गए वहाँ-वहाँ पूँजीवाद की बुराई घूसखोरी -भ्रट्राचार को ले गए,जिस हम इस कहानी में देख सकते हैं । इतिहास में तारीखें दर्ज होती है और साहित्य में उन तिथियों के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक के अन्तर्सम्बंध-अन्तर्द्वद , जिससे उन तिथियों को हम महसूस करते हैं। नमक का कानून 1882 बना और गाँधी जी ने 1930 में नमक के कानून के खिलाफ दांडी यात्रा की।
इस कालखंड के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्थाओं के अन्तर्सम्बंध-अन्तर्द्वद , को समझ सकते हैं,कि पिता कहते हैं- ऊपरीं आय ईश्वर देता है । ' अलोपीदीन को हिरासत में लेने के बाद उपजी परिस्थितियों में पिता का भला -बुरा कहना, माँ का गुस्सा करना और पत्नी का सीधे मुँह बात नहीं करना और पं. अलोपीदीन का बंशीधर के लिए कोई खाना नहीं छोड़ते, जिससे बंशीधर को परिस्थितियों से समझौता करना पड़ता है । इस तरह यह प्रेमचंद जी की शुरुआती दौर की आदर्शोन्मुख कहानी है ।
विचार गोष्ठी का संचालन करते हुए डॉ.प्रशांत झा ने कहा कि प्रेमचंद जी की यह कहानी साहित्य रूपी ऐसी मशाल है ,जिसके प्रकाश से आज भी हम अपने आप को ऊर्जावान हो रहे हैं ।यह कहानी ईमानदारी की गरिमा और सहजता को स्थापित करती हुई ईमानदार व्यक्ति के संघर्ष की कहानी है ।
इससे पहले प्रदीप अग्रवाल ने पाठक मंच के सदस्यों का परिचय कराया फिर श्री दयाराम पटेल ( पार्षद प्रतिनिधि ) ने स्वागत भाषण कहा कि आज का दिन ठाकुरपारा के लिए ऐतिहासिक दिन बनने जा रहा है क्योंकि ठाकुर पारा वार्ड नं. 05 में पहली बार साहित्यिक कार्यक्रम होने जा रहा है और वह भी प्रेमचंद जैसे कालजयी कथाकार की कथा 'नमक का दरोगा ' पर शहर के बुद्धिजीवियों की में उपस्थिति । हम सब ठाकुर पारा वासी इसके साक्षी बन रहे हैं । इनके विचार हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका तय करेंगी। तत्पश्चात स्वच्छ सुश्री एकता यादव ने 'नमक का दरोगा' कहानी का पाठ किया। कार्यक्रम का आभार प्रदर्शन करते हुए श्री दयाराम पटेल ने पाठक मंच के सदस्यों के द्वारा इस अवसर को यादगार बनाते हुए वृक्षारोपण को भी सम्पन कराया ।
इस कार्यक्रम को मूर्त रूप देने में श्रीमती सुमन पटेल ( पार्षद ) ,श्री परमानंद सिंह ,श्री नासिर मोहम्मद कुरैशी,श्री सुविमल श्रीवास्तव,श्री सूर्यकांत यादव, सुश्री सावित्री ठाकुर, श्रीमती गीता यादव,सुश्री याशिका यादव,सुश्री सुनीता यादव, श्री विनोद वर्मा श्री महेश राम पटेल ,श्री संजय यादव ,श्री खीलेन्द्र पटेल,श्री खेलन पटेल,श्री दिलीप यादव,श्री नानुक शुक्ला,श्री राममित्र ठाकुर ने अमूल्य सहयोग प्रदान किया ।