महोत्सव के दूसरे दिन बांसुरी वादक पं. रोनू मजूमदार ने राग गोरख कल्याण से शुरुआत की और राग खमाज में बनारस का रंग दिखाया। उनकी बांसुरी की सुरीली धुन में संगीत नगरी के श्रोता मग्न रहे। बीच-बीच में विश्वविद्यालय के छात्रों को वे सिखाते रहे।
नियाव@ विवि
कथक कलाकार यास्मिन सिंह और साथियों ने गोरी सलोनी तोरे नैना… ठुमरी पर प्रस्तुति दी। रास रचत बृज में रंग लाला… जैसी बंदिशों पर कलाकारों के घुंघरुओं की आवाज ने दर्शकों को बांधे रखा।
महोत्सव का रंग/ प्रस्तुति के दौरान तबले की संगत से खुश हुए पं. मजुमदार

विश्वविद्यालय पहुंचे इन कलाकारों ने कहा…
खैरागढ़ के बारे में पूछते हैं शिकागो के बच्चे
बहुत बड़ी बात है कि मैं इस आश्रम में बांसुरी बजाने आया हूं। अमेरिका में मेरा एक स्कूल है। शिकागो के बच्चे पूछते हैं कि क्या हम खैरागढ़ जा सकते हैं? मैं एक बार 2012 में कार्यक्रम देने आया था। यहां के बच्चे भीतर ऑडिटोरियम में मुझे सुन रहे थे। यहां के छात्र पूरे विश्व में नाम कमाएं। यही कामना है।
-पं. रोनू मजूमदार, बांसुरी वादक
जो गुरुओं से मिलता है, उसे साधिए
ये कला का मंदिर है। यहां जो कुछ भी गुरुओं से मिलता है, उसे साधिए। रियाज करिए। रियाज उस स्तर का हो कि हर अंग मेमोरी कार्ड हो जाए। एक-एक बंदिश कंठस्थ हो जाए। आज भी इस मंच पर मेरे साथ विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने प्रस्तुति दी।
-यास्मीन सिंह, कथक कलाकार
(खैरागढ़ महोत्सव 2018 दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर)
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