सरकारें बदली,पर समस्याएं जस की तस,एक भी योजना का नहीं मिला लाभ
खैरागढ़. सरकारें बदल गईं पर डर नहीं बदला,बारिश थोड़ी बढ़ते ही इतवारी बाज़ार के रहवासियों के दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं। टिकरापारा के रहवासी डर में जीते हैं,शिव मंदिर रोड के रहवासी बाढ़ के उपाय करने में लग जाते हैं। पर सरकारों और जनप्रतिनिधियों को इसकी फिक्र कहाँ हैं। वे तो योजनाओं से धन अर्जन में लगे हुए हैं। साल 2005 और 2007 में आई बाढ़ के बाद बचाव की तमाम योजनाएं बनाएं गईं,पर ये सारी योजनाएं जन हितकारी होने से अधिक भ्रष्टाचार का केंद्र बनकर रह गईं। पूंजीपतियों ने इन योजनाओं के सहारे जमकर अपनी संपत्ति के दाम बढ़ाए और लाभ कमाए पर जन समस्या जस की तस हैं।
फ़ोटो 1. बाईपास 14 साल बाद भी नहीं बना बाईपास
बाढ़ के तुंरत बाद बाईपास की कार्ययोजना तैयार की गई ताकि आने वाले दिनों में शहर का सम्पर्क न टूटे,पर 14 साल के बाद अंतराल के बाद भी बाईपास नहीं बना। अलबत्ता बाईपास निर्माण के लिए आई राशि मुआवज़े के बंदरबाट में ज़रूर निकल गई। पूंजीपतियों ने सरकारी ज़मीनों तक से मुआवजा हासिल कर लिया।
फ़ोटो 2. उखड़ी सड़क
ठेकेदार ने भी निकाली मलाई
बंदरबाट में बाईपास निर्माण का ठेकेदार कहाँ बाहर रहने वाला था उसने भी अपने हिस्से की मलाई निकाली,जिसका परिणाम सामने है बाईपास की गिट्टी उखड़ चुकी है। सड़क पूरी होने से पहले उखड़ रही है। और ठेकेदार घटिया निर्माण को लगातार पीडब्लूडी के अधिकारियों के संरक्षण में अंजाम दे रहा है।
फ़ोटो 3. नहीं बना प्रधानपाठ का गेट
घटिया निर्माण का एक और श्रेष्ठ उदाहरण प्रधानपाठ बैराज का टूटा गेट भी अब तक नहीं बन पाया। बारिश का हल्का सा झेल भी न सह पाने वाले इस बैराज के बाकी गेट की गुणवत्ता भी कुछ खास अच्छी नहीं है।
फ़ोटो 4. - टिकरापारा पुल
सैकड़ो की आबादी को अभी भी पुल का इंतज़ार
टिकरापारा वोट बैंक पॉलिटिक्स का सबसे बड़ा ठिकाना,यादव बाहुल्य। पर यहाँ के रहवासियों को सुविधा कर नाम पर फ़क़त कोरी घोषणाएं ही मिली हैं। मोती नाले पर बने पुल से पानी निकलने पर टिकरापारा का सम्पर्क शहर से टूट जाता है। फिर एक दो दिन तक पानी की बाट जोहते रहवासी अपनी किस्मत को कोसते हैं।
शिव मंदिर भी कट जाता है
यही हाल शिव मंदिर रोड का है, थोड़ी बारिश के बाद नाला पुल के ऊपर से चलता है। फिर दो से तीन दिन में स्थिति सामान्य होती है।
आईएचएसडीपी योजना के मकान खाली पड़े
आईएचएसडीपी योजना के तहत बाढ़ के बाद मकान बनें,कुल 8 करोड़ की राशि से 492 मकान बनाये गए। पर 13 परिवारों को छोड़कर इन मकानों में कोई रहने नहीं आया। पालिका यहाँ के अधूरे कार्यों को पूरा नहीं कर सकी और प्रशासन यहाँ हितगृहियों को शिफ्ट नहीं कर पाया।
2031 की कार्ययोजना में सिर्फ पूंजीपतियों ने कमाया लाभ
बाढ़ के बाद ही नगर व ग्राम निवेश ने 2031 की नगर विकास की कार्ययोजना का खाका खींचा, इसमें भी पूंजीपतियों को लाभ पहुँचाने की कार्ययोजना अधिकारियों ने खींची। बकायदा राजनीतिक रसूखदारों की जमीनों को आवसीय दिखाया गया।किसी की कृषि ज़मीन को आवासीय दिखाया गया,जहां जाने का रास्ता भी नहीं था। तो किसी की कृषि ज़मीन को इंडस्ट्रियल दिखाया गया।
समस्या के कारण
- नगर के ज्यादातर नालों पर पूंजीपतियों का कब्ज़ा है
- नालों को पाटकर या तो प्लाट काटे जा चुके हैं या फिर बिल्डिंग बनाई जा चुकी है
- निकासी को लेकर ज़रूरी उपाय नहीं है
- कोई भी शासकीय योजना कारगर नहीं हैं