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स्पेन की क्लारा को भाई पीली दाल, इटली के पॉली लोस्की को मसालेदार सब्जियों में दिखा इमोशन

खाने में भी ढूंढे रंग/ इंटरनेशनल ग्राफिक्स आर्ट फेस्टिवल में केवल जिंक प्लेट पर ही चित्रकारी नहीं हो रही। विदेशी कलाकारों का मन तो खैरागढ़ के माहौल में रंग गया है।

 

नियाव@ विवि

इंटरनेशनल ग्राफिक्स आर्ट फेस्टिवल में केवल कैनवास या जिंक प्लेट पर ही चित्रकारी नहीं हो रही। विदेशी कलाकारों का मन तो खैरागढ़ के माहौल में ही रंग गया है। तभी तो स्पेन की क्लारा एमांडो को पीली दाल भा गई और इटली के पॉलो लोस्की ने मसालेदार सब्जियों में छिपी भावनाओं को ढूंढ लिया। दोनों का कहना है कि विश्वविद्यालय का हरेक शख्स प्योर आर्टिस्ट है।

फुरसत के पल: फेस्टिवल में सीखने-सिखाने के सिलसिले बाद हंसी-ठिठोली
संगीत विश्वविद्यालय में ग्राफिक्स आर्ट फेस्टिवल
जनवरी में हुए इंटरनेशनल ग्राफिक्स आर्ट फेस्टिवल के दौरान प्रो. नागदास के साथ स्पेन की क्लारा और पीछे खड़े हैं पॉलो लोस्की।

क्लारा कहती हैं कि दूसरी बार यहां आई, लेकिन पहला अनुभव भूल नहीं पाई। यहां आते ही जैसे अपनेपन का एहसास हुआ। घर जैसा लगा। यहां के लोगों ने यह एहसास दिया। खास तौर पर खान-पान ने। यूरोप में इंडियन रेस्टोरेंट तो हैं, लेकिन वहां के खाने में यूरोपिन टेस्ट है। व्यंजनों के नाम पूछने पर चावल सबसे पहले याद आया। तीखी सब्जियां भी। दिमाग पर जोर डाला तो पीला रंग याद आया। फिर नाम याद आते ही उछल पड़ीं। बोलीं- पीली दाल। आई लव दिस डिश। मैं रोज खाती हूं। इधर पॉलोस्की ने तो मसालेदार सब्जियों पर जैसे रिसर्च ही कर डाली। उन्हें खाने में इमोशन नजर आया। उनका कहना है कि खाना काफी स्पाइसी है। टेस्ट स्ट्रांग है, लेकिन भारीपन नहीं है।

 

फिलहाल यहां के स्टूडेंट हैं मेरे प्रोफेसर

विश्वविद्यालय में सीखने-सिखाने की कला से क्लारा पर गहरी छाप छोड़ी है। उनके शब्दों में, मैं जोदरन यूनिवर्सिटी में टीचर हूं। स्पेन, मैक्सिको, न्यूयाक जैसी जगहों पर घूमी हूं। सभी जगह के काम देखे हैं। लेकिन ऐसा माहौल कहीं नहीं। फिलहाल इस कैंप में मैं स्टूडेंट हूं और यहां के स्टूडेंट मेरे प्रोफेसर।

नेचुरल लैंड स्कैप देखा और जिंक प्लेट पर उतारा

पॉलो लोस्की पहली बार भारत आए हैं और विश्वविद्यालय में नेचुरल लैंड स्कैप देखने के बाद उनसे रहा नहीं गया। बोर्ड पर हिंदी में लिखे विवि प्रबंधन के निर्देश पर कलाकार की संवेदना भारी पड़ी। उन्होंने पत्तियां तोड़ी और जिंक प्लेट पर उसकी कलाकृति उभार दी।

ऐसे ही आजादी से काम करते रहें

इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय पर पॉलो लोस्की बोले- मैं यहां बुद्धिजीवियों से मिला। यहां सभी पूरी आजादी से काम करते हैं। लड़ते नहीं। जलते भी नहीं। यही सही तरीका है। ऐसे ही रहें। क्लारा बोलीं- यहां जैसा माहौल कहीं नहीं मिलेगा। ये मेरा परिवार है। मैं यहां बार-बार आना चाहूंगी।

(जनवरी 2018 में दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर)

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Last modified on Thursday, 09 January 2020 12:16

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