गौरवान्वित नहीं कर सके गौरव इसलिए बाबा की शरण में
समय बदल गया है। अब तो वही चलेगा जो रिजल्ट ओरियेंटेड होगा। कहा जा रहा है कि इसी के चलते प्रदेश में नौकरशाहों की लगातार परीक्षा ली जा रही है। इसमें जो फेल होता दिखता है, उसे तुरंत हटाकर पीछे की बेंच में भेज दिया जाता है। इस चयन परीक्षा से मुखिया का दरबार भी अछूता नहीं है। तभी तो ओएसडी और सचिव स्तर के अधिकारी भी बदल दिए गए, एकदम चुपचाप, मौन रहकर। अब जब परिवर्तन हो ही गया है, जुबान को भला कोई बंद करा सकता है? लोग कहने लगे हैं कि मुखिया के दरबार में साहब फिट नहीं हो पा रहे थे। मतबल साहब से जिस रिजल्ट की आशा थी, वे नहीं दे पाए, इसलिए हटा दिए गए। चर्चा है कि उनकी एक कमजोरी थी जो उनपर भारी पड़ी। वे तिकड़मी नहीं थे। वो आस्तिक तो थे पर लक्ष्मी जी भी उनपर प्रसन्न नहीं थीं। इसलिए उन्हें बाबा के पास भेज दिया गया है। माना जा रहा है कि वहां ही वे ज्यादा उपयोगी साबित हो सकते हैं। लेकिन सवाल उठता है कि बदले में जो साहब आए हैं, क्या वे फिट हैं, काबिल हैं? तो इसका जवाब लोग दे रहे हैं उनके पिछली सरकार के कार्यकाल से। चर्चा है कि ये साहब हिंदुस्तान की उस कौम की तरह हैं जो अपने अधिष्ठाता से धन-संपत्ति आदि की मांग नहीं करता। वह कहता है हे प्रभु मेरा खर्चा बढ़ाओ। मतलब यह कि खर्चा बढ़ाने से पहले प्रभु को लक्ष्मी जी को तो भेजना ही पड़ेगा। बहरहाल सच्चाई क्या है, मैं नहीं जानता पर लोगों का दावा है कि पिछले चुनावों में खर्चा कई गुना बढ़ा था।
✍जितेंद्र शर्मा