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रायपुर। वेद पुराणों में वर्णित है कि भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद चिकित्सा के जनक थे। भारतीय संस्कृति में सभी तरह की बीमारी में जड़ी-बूटियों का ही इस्तेमाल किया जाता था। वर्तमान दौर में आधुनिक चिकित्सा के चलते आयुर्वेद चिकित्सा का महत्व कम हो रहा है, जबकि इस पद्धति से बड़ी से बड़ी बीमारियां ठीक की जा सकती है।
आयुर्वेद और जड़ी-बूटियों के महत्व को दर्शाने के लिए इस बार रामसागरपारा स्थित श्री बाल गजानन गणेशोत्सव समिति ने जड़ी-बूटियों से ही भगवान शंकर रूपी गणेश प्रतिमा का निर्माण करवाया है। गणेश जी के वाहन दो चूहे भी जड़ी-बूटियों से ही बनाए गए हैं।
इन जड़ी-बूटियों का किया इस्तेमाल
भगवान शंकररूपी गणेश प्रतिमा के पैरों के नाखून से लेकर जटा से निकल रही गंगा तक में लगभग 38 जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया गया है। इनमें खश, शंकर जटा, मूंगा, करनफूल, नदी सीप, जटामासी, लालगुंजा, माजूफल, पारस पीपल, ऐठीमुर्री, नागरमोथा, हांथी काकर, जायफल, सेंदुरी बीज, लाल सफेद काला गुंजा, असगंध, पुर्ननवा, निरमली बीज, कमल गट्टा, भसकटैया फल, इमली बीज, गटारन, अर्जुन छाल, भोजपत्र, शिकाकाई, बालहर्रा, कसा सुपारी, सुरंजान, सफेद मुसली, बहेरा, हर्रा, लालगुंजाबड़ा, गरूण फल, सेमरकंद, कपूर कचरी, गोमती चक्र, सतावर, रीठा से प्रतिमा बनाई गई है।