खैरागढ़ विधानसभा चुनाव को क्रिकेट से जोड़कर देखिए। तीन प्रमुख टीमें मैदान में हैं। कमल, पंजा और हल चलाता किसान की गुलाबी टीम। तीनों के बल्लेबाज यानी प्रत्याशी अनुभवी हैं। खैरागढ़ विधानसभा क्षेत्र के अलग-अलग पिचों पर खेल चुके हैं। रन (वोट) जुटाने का उनका अपना तजुर्बा भी है। इसी के आधार पर सभी बल्लेबाजी कर रहे हैं।
पढ़िए चेहरे का भाव / ये जंगल पट्टी में हुई एक सभा के दौरान मतदाताओं की तस्वीर है।
अंपायर यानी वोटर को बल्लेबाजों पर कोई डाउट नहीं है, लेकिन तीनों ही टीमों के फील्डरों (कार्यकर्ताओं) की गतिविधियां उसे कन्फ्यूज कर रही। चर्चा तो केवल इसी बात की है कि कौन, किसकी तरफ से फील्डिंग करेगा? या कर रहा है? गले में लटके गमछे से उनकी जुबान पर आया नाम मेल नहीं खा रहा। कन्फ्यूजन तो होगा ही। वहीं अंतिम चार ओवरों (दिनों) में कप्तान (चुनाव संचालक) की भूमिका काफी कुछ तय करेगी। ऐसे फील्डरों को पहचानना और उनको कंट्रोल करना चुनौती पूर्ण होगा।
इस मैच में चिन्ह और चेहरे का बड़ा घालमेल होने की आशंका है। साल्हेवारा की सभा में गुलाबी टीम के सुप्रीमो अजीत जोगी ने भी इसे ही स्पष्ट करने की कोशिश की। बोले- अब मोर अउ देवव्रत के निशान पंजा नई हे। यानी यह टीम अंपायर के असमंजस को भांप चुकी है। डर है कहीं उनके हिस्से के रन अंतत: पंजा टीम के बल्लेबाज गिरवर जंघेल के खाते में न जुड़ जाएं।
इसलिए गुलाबी टीम का फोकस ईवीएम में चौथे नंबर के बटन पास लगी फोटो पर ज्यादा है। वे पंजा टीम के विरुद्ध राजपरिवार के चेहरे को खड़ा करना चाह रहे हैं। पिछले तीन मैचों पर नजर डालें तो जंगल की उबड़-खाबड़ पिच पर पंजे के बल्लेबाजों ने तेजी से रन बनाए। इसी टीम का अनुभवी खिलाड़ी इस मैच में गुलाबी टीम की तरफ से बल्लेबाजी कर रहा है। जाहिर है नतीजा चौकाने वाला होगा।
हरेक टीम का फिक्स फील्डर और बॉलर यहीं पर काम करेगा। कुछ ने तो काम शुरू भी कर दिया है। वे गुगली-बाउंसर फेंक कर अंपायर पर उनके मुताबिक निर्णय लेने का दबाव बना रहे हैं। ऐसे खिलाड़ी तीनों ही बल्लेबाजों के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। क्योंकि ऐसे फील्डर तीनों ही टीमों के पास हैं। कहीं कम तो कहीं बहुत ज्यादा। ऐसे कुछ फील्डरों पर तो आला नेताओं का भी कोई कंट्रोल नहीं।
भाजपा के काेमल जंघेल को विकास और शासन की योजनाओं पर भरोसा है। कांग्रेस के गिरवर जंघेल का नारा है बिजली बिल हॉफ और किसानों का कर्जा माफ। जकांछ के देवव्रत सिंह ने भी किसान और बेरोजगारों को टारगेट में लिया है। वे शपथ पत्र के साथ मतदाताओं के सामने हैं। देखना होगा कि मतदाता मिल रही सुविधाओं को तवज्जो देंगे या समस्या के समाधान पर अपना विश्वास जताएंगे।
बड़ा डाउट / इन मुद्दों पर किसे मानें ताकतवर…
1. उमराव पुल से डीएफओ बंगले तक बनी पांच करोड़ की सड़क में हुए भ्रष्टाचार का तीनों ही पार्टियों ने विरोध किया पर कार्रवाई नहीं हुई।
2. नियम विरुद्ध सड़क चौड़ीकरण पर हाईकोर्ट के आदेश बाद एक ही पीड़ित को राहत मिली बाकि अभी भी चक्कर काट रहे।
3. 11 करोड़ के पुल का ड्राइंग डिजाइन चेंज कर दिया गया। तीनों ही पार्टी के नेताओं ने स्वीकारा, लेकिन समाधान नहीं निकला, सजा भी नहीं हुई।
4. 59 करोड़ के प्रधानपाठ बैराज में अफसरों की संलिप्तता उजागर हुई, लेकिन किसी ने भी आवाज नहीं उठाई, खामोशी की वजह समझ नहीं आई।
चार चुनावों में 32 बूथों के उलटफेर से परखिए जंगल पट्टी में जीत का रहस्य
मधुसूदन ने इसमें बनाई थी बढ़त / पोड़ी, खादी, नवागांव, देवपुराघाट, समनापुर, आमगांव, रामपुर, मोहगांव, पैलीमेटा, भदेरा, ठाकुर टोला, जीराटोला, बगदूर, जंगलपुर घाट, मगरकुंड, बिरखा, कटंगी आदि।
विधानसभा चुनाव में कोमल विरुद्ध मोती जंघेल
मोती जंघेल के मजबूत बूथ / जिन बूथों में देवव्रत मजबूत रहे उनमें से केवल नचनिया, सरई पतेरा, बांसभीरा, गोलरडीह, बेलगांव और मुंडाटोला में ही मोती जंघेल को बढ़त मिली। बाकि सभी में कोमल ने बाजी मारी।
कोमल के मजबूत बूथ / तब कोमल ने मधुसूदन की जीत वाले बूथों में अपनी बढ़त बनाए रखी। कोपरो-बंजारपुर आदि गिने-चुने बूथों में मामला लगभग बराबरी का रहा। कांग्रेस के नौ बूथ छीन लिए।
विधानसभा चुनाव कोमल विरुद्ध गिरवर जंघेल
गिरवर ने गाड़े झंडे / इस चुनाव में गिरवर ने देवव्रत के ज्यादातर मजबूत बूथों पर अपने झंडे गाड़े। हालांकि जामगांव, गेरुखदान, मानपुर पहाड़ी और ढाबा को वे हथिया न सके। जबकि देवपुराघाट, ठाकुरटोला, बिरखा और मगरकुंड को कोमल से छीन लिया, जहां देवव्रत कमजोर साबित हुए थे।
लोकसभा चुनाव अभिषेक सिंह विरुद्ध कमलेश्वर वर्मा
अभिषेक ने छीन लिए बूथ / बगारझोला, गेरुखदान, डुमरिया, मानपुर पहाड़ी और ढाबा के साथ गिरवर के कब्जे वाले देवपुराघाट, ठाकुरटोला और मगरकुंड जैसे बूथों पर भी जीत हासिल कर ली।