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खैरागढ़. कभी आर्थिक विपन्नता की मार झेल रहा ढीमर समाज अब आत्मनिर्भर हो चुका है। और ये आत्मनिर्भरता आई है। मछली पालन और मुर्गा पालन में खैरागढ़ ढीमर समाज ने महारथ हासिल कर ली है। ये न केवल तालाबों में मछली पालन का कार्य करते हैं । बल्कि उसे खुले बाज़ार में भी बेचते हैं। आत्म निर्भरता की ये तस्वीर सुकून देने वाली है। पर पहले हालात ऐसे नहीं था। यह समाज ज्यादातर समय बांस उद्योग पर निर्भर था और बांस के सामान बनाकर बाज़ार में बेचता था। लेकिन समय के साथ युवाओं ने मछली व्यापार को अपने हाथ में लिया और व्यापार को नई ऊंचाइयां दी हैं। व्यापार से किसी एक व्यक्ति को सीधे लाभ न मिलकर पूरे समाज को इसका लाभ मिल रहा है।
इन तालाबों से निकलती है मछली
समाज के युवा छुईखदान,धमधा,सरोधा दादर,मुढ़ीपार,मन्द्राकुही, हीरावाही, बांध नवागांव,राहुद क्षेत्र के अन्य बांध व तालाबों को समितियों के माध्यम से ठेके पर लेकर कार्य करता है। इससे युवाओं को रोज़गार तो मिलता ही है। समूहों को भी लाभ मिलता है।क्षेत्र के ज्यादातर तालाबों में मछली मारने का काम स्थानीय ढीमर समाज के युवाओं को ही मिलता है।
हर हफ्ते 70 क्विंटल मछली की खपत
अनुमानतः हर हफ्ते मछली पालन का यह व्यापार 70 क्विन्टल से अधिक का है। ढीमर समाज के युवा ही गंडई, धमधा,छुईखदान,लोहारा,ठेलकाडीह, सिंगारपुर,उकवा,बालाघाट,दमोह सहित अन्य शहरों तक मछली की सप्लाई करते हैं।
शिवभक्ति में होता है भव्य आयोजन
व्यापार में बढ़ोतरी और सुधरते सामाजिक हालातों ने समाज के युवाओं में धार्मिक अनुष्ठानों को लेकर भी विश्वास बढ़ा है। महा शिवरात्रि पर्व पर इतवारी बाज़ार के इसी कार्य स्थल पर भव्य आयोजन होता है। जिसमें ढीमर समाज के प्रत्येक व्यक्ति को परिवार सहित शामिल होना अनिवार्य है। इस दौरान मछली पालन का व्यवसाय पूरी तरह बंद रह है,और सभी सामाजिक जन एक ही स्थल पर व्यापार करते हैं।
कड़ी मेहनत के साथ कर रहे जीवन यापन
समाज के जयश्याम ढीमर,संतोष ढीमर,श्यामलाल ढीमर,सोनू ढीमर और संजय ढीमर ने बताया कि समाज के ज्यादातर युवा अब काम में लग चुके हैं,और मछली पालन व मुर्गा बेचने का व्यवसाय करते हैं। और कड़ी मेहनत से आय अर्जित कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं।