खैरागढ़ के जनमुद्दों को लेकर राज दरबार में हुई ‘डंडा शरण’ की पेशी। लगे गंभीर आरोप! फिर महाराज ने दिया आदेश…
सीन-1
दरबार सजा है। मंत्री-संत्री जमे हुए हैं, कुर्सी पर। लग रहा है जैसे रियासत के सियासतदार यही हैं। राजा के कान भरने वाले! आवाम की नजरों में उन्हें मुजरिम साबित करने वाले! बाहर कुछ और भीतर से कुछ और ही..! सिंहासन पर बैठे महाराज मूछों पर ताव दे रहे हैं। मानो अपने पुरखों की विरासत पर फक्र कर रहे हों।
तभी दरबार के बाहर खड़े दरबान की आवाज गूंजी… ‘डंडा शरण' हाजिर हो…! जंजीरों में जकड़ा हुआ दुबला-पतला निरीह प्राणी कुछ क्षण बाद उसी हाल में लाया गया। शरीर के घाव और मुंह से निकल रही कराह से उसकी पीड़ा बयां हो रही है। वह लड़खड़ाते कदमों से चलने की कोशिश कर रहा है। धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। पीछे भाला लिए दो सैनिक उस पर अपनी ताकत आजमा रहे हैं। Corona के साथ चाहिए Corruption का टीका भी!
सीन-2
महाराज! इस मुजरिम की कद-काठी पर मत जाइए। मासूम चेहरा भी बनावटी है। यह बड़ा ही खतरनाक है। सिंहासन के ठीक नीचे खड़े दीवान के हाथों में मोटी फ़ाइल दिखी। वह उसी फ़ाइल के पन्नों को पलटते हुए बोले।
‘इस मुजरिम ने ऐसी ही मासूमियत दिखाकर आपकी भोली-भाली सहनशील आवाम को छलने की कोशिश की है। इसने लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ किया है। यह कहता है, नियम-कायदों से खेलने वालों को नहीं बख्शेगा!'
‘इसने प्रशासन को कटघरे में खड़ा किया। अफसरों की नीयत पर सवाल उठाए। भला हिम्मत तो देखिए इसकी! जनता को बरगला रहा है। न्याय दिलाने की बात करता है। कड़वी जुबान और तीखी कलम, दोनों चलाता है। सारे सबूत हैं, हमारे पास!'
सीन-3
‘ये आप मुजरिम का गुनगान कर रहे हैं या आरोप लगा रहे हैं। अफसरों की कामचोरी को ‘राजा' तक पहुंचाने के लिए कलम में धार होनी जरूरी है, वरना मालूम कैसे चलेगा कि इतने बड़े राज्य में आखिर हो क्या रहा है? फिर सच की जुबान तो कड़वी होती ही है!' महाराज के शब्दों में न्यायप्रियता झलकी।
‘वही तो..! वही इसका जुर्म है, महाराज! इसने अपनी तासीर से अलग काम किए। इसने इतिहास के किस्से तो सुनाए, लेकिन ‘लोकतंत्र के राजा' को सियासत में फंसी रियासतकालीन सुविधाओं की जानकारी नहीं दी। सवाल भी नहीं उठाए! यही इसका सबसे बड़ा दोष है।'
‘बातों को गोल-गोल घुमाकर दरबार का वक़्त जाया कर रहे हैं, आप। सीधे मुद्दे पर आइए। आरोप क्या हैं..?'
‘पानी… पानी… पानी…' जंजीरों में जकड़े डंडा शरण का मारे प्यास के गला सूखा। पास खड़े सैनिकों ने उसे पानी पिलाया। काश ! पानी को भी नक्शा दिखा देते साहब...
जैसे ही गिलास मुंह से हटा, सांस रोके खड़े दीवान जी बोल पड़े- ‘पानी महाराज, पानी! तीन नदियों के बीच खैरागढ़ को बसाने और 1894 में पाइप लाइन के जरिए घर-घर पानी पहुंचाने की कहानी तो इसने चुपचाप सुनी, लेकिन आज भ्रष्टाचार में फंसी इस सुविधा को लेकर कोई प्रश्न नहीं किया।'
‘ऐसा क्यों किया, तुमने? तुम तो माध्यम मात्र हो?', तब के जल संसाधन मंत्री बोले।
सीन-4
डंडा शरण सर झुकाए खड़ा है और दरबार में खड़ा हर शख्स उसे घूर रहा है।
'यही एकमात्र आरोप नहीं है, महाराज! इसने आपके आवाम का भरोसा तोड़ा है', दीवान जी बोले!
‘भला वो कैसे?', महाराज ने कहा। Khairagarh: कमीशन + करप्शन = 'कोरोना '
‘इसने फतेह मैदान में हुए क्रिकेट टूर्नामेंट और तब खैरागढ़ आए खिलाड़ियों का के बारे में बड़े ही ध्यान से सुना, लेकिन उसी मैदान की वर्तमान दशा को अपने ‘राजा' के सामने रखने में इसके हाथ-पांव फूल गए। इसने तो उस निश्छल व्यक्ति की भावना भी ‘राजा साहब' को नहीं बताई, जो कभी उनके साथ क्रिकेट खेला करते थे और कागज के टुकड़े में अपनी समस्या लेकर सुबह-8 बजे इसके पास पहुंचे थे।'
‘क्या ये सही है, डंडा शरण?'
‘नज़रें झुकाए खड़े डंडा शरण ने फ़कत सिर हिलाकर स्वीकारोक्ति दी।’
सीन-5
जंजीरों के बोझ से ‘मुजरिम' के घुटनों में दर्द होने लगा। अचानक रक्तचाप बढ़ा और वह बेहोश होकर गिर गया। डॉक्टर आए, दवा देकर उसे होश में लाया गया।
‘अब ऐसी घटिया एक्टिंग और बहाने नहीं चलेंगे डंडा शरण, दीवान जी आप आरोप पढ़ें', गृहमंत्री ने ताकीद किया और दीवान जी को आदेश दिया।
‘आप इस कपटी को नहीं जानते महाराज! यह एक तरफ रियासतकालीन स्वास्थ्य सुविधाओं की तारीफ तो करता है, लेकिन अपने ‘राजा' से यह पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाता कि अस्पताल का हाल बेहाल क्यों है? क्यों, बार-बार राशि लौटाई जा रही है?'
‘क्या..? क्या सचमुच ऐसा हो रहा है? मैं तुमसे पूछ रहा हूं, डंडा शरण? क्या अस्पताल निर्माण की राशि बार-बार लौटाई जा रही है? और अगर ऐसा है, तो क्या तुम जानते हो कि इसका कारण क्या है?', महाराज की लाल आंखें देख डंडा शरण कांपने लगा।
‘मैंने भी सिर्फ सुना है, महाराज! तथ्य नहीं जुटा पाया हूं?'
‘तुम तो बेहद नालायक और गैरजिम्मेदार निकले!'
सीन-6
मुजरिम पसीने से तर है। जख्मों से खून रिस रहा है। आंखें भर आईं है, लेकिन दरबार में मौजूद एक भी व्यक्ति उस पर तरस नहीं खा रहा।
‘महाराज! एक और बात, इसे सुरों की समझ है। यह सधे ताल पर गीत गाता रहा है। यह जानता है कि इसके राजा भी संगीत प्रेमी हैं, लेकिन इसने अपने मित्र की भावनाओं को ठेस पहुंचाई। न गीत गुनगुनाने कहा और न ये पूछा कि शिक्षा में सरगम लाने के लिए राजा साहब के कदम क्या होंगे?'
‘जिस संगीत और कला के लिए हमने महल त्याग दिया। जनता को सुविधा देने सारे ऐश-ओ-आराम छोड़े। उनकी हरेक जरूरत को प्राथमिकता दी। क्या तुम इतिहास से वाकिफ नहीं हो, डंडा शरण?'
‘हूं महाराज!', अब तो डंडा शरण की केवल फुसफुसाहट सुनाई दे रही है। वह भीतर से बेहद डरा हुआ है। उसका डर उसके चेहरे पर उभर आया है।
सीन-7
‘मुझे बख्श दीजिए महाराज! माफ कर दीजिए।', डंडा शरण लगभग चीखते हुए महाराज के चरणों में गिर गया।
‘नहीं, महाराज! इसने बख्शने लायक कोई काम नहीं किया है।', विधि मंत्री ने दखल दी।
‘यह आज खुद के लिए न्याय मांग रहा है, महाराज! लेकिन इसके पास न्याय दिलाने की गुहार लेकर पहुंचे लोगों का संदेश भी यह ‘राजा साहब' तक नहीं पहुंचा पाया।'
‘रियासतकालीन नाले की कहानी ‘राजा साहब' से पूछकर जिम्मेदार अफसरों को कटघरे में खड़ा करने की बजाए इसने कानून से खिलवाड़ करने वालों के सामने हथियार डाल दिए। यह चाहता तो जिम्मेदार अफसर से ‘राजा साहब’ का सीधा संवाद करवाता और भू-राजस्व संहिता के अधिनियमों का हवाला देकर ऑन द स्पॉट फैसला करवाता।'
‘इसने वह प्रकरण भी नहीं उठाया, जिसमें खुद नेतृत्वकर्ताओं का मुआवजा सालों से अटका हुआ है। यानी ये गरीब आवाम को तो छल ही रहा है, उन्हें भी ठग रहा है, जिनके कंधों पर समाज के विकास की जिम्मेदारी है।'
सीन-8
‘प्रधानमंत्री जी, आपकी क्या राय है? इसके साथ क्या सलूक किया जाए?'
‘महाराज! निश्चित तौर पर इसका अपराध क्षमा योग्य नहीं है। इसने अपने ‘राजा' को जन पीड़ा से अवगत नहीं कराया। इसने तथ्य छुपाए और अपने ‘राजा' से न्याय करने का अवसर छीना। इसकी लापरवाही के कारण कई सवाल अनसुलझे रह गए।'
‘मेरा तो मानना है, महाराज! डंडा शरण को सीधे फांसी की सजा सुनाई जाए।', विधि मंत्री ने कहा।
‘नहीं…… नहीं…… महाराज! आप ही फांसी दे देंगे तो यह अपील के सारे अवसर खो देगा, इसे एक मौका मिलना चाहिए, आखिर आप लोगों ने ही तो फांसी की सजा के विरुद्ध अपील की मिसाल स्थापित की है।', उस दरबार के सबसे वयोवृद्ध मंत्री ने सलाह दी।
सीन-9
मंत्रियों की राय जानने के बाद महाराज ने आदेश दिए…
‘मंत्रियों की सलाह है कि मुजरिम को एक अवसर मिलना चािहए। डंडा शरण द्वारा पहले उठाए गए जनहित के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए हमारा आदेश है कि यह अपने राजा के सामने वह सारे मुद्दे उठाए, जिसकी अपेक्षा आवाम को है।’
‘डंडा शरण को यह आदेश दिया जाता है कि वह अपने राजा के सामने जनता की वकालत करे और सारे तथ्यों से अवगत कराए।’
‘ठीक है! डंडा शरण?’ Khairagarh: नोटों की बाढ़ में बहा नाला!
‘जी महाराज! आपके आदेश का पालन करने की पूरी कोशिश करुंगा। रियासतकाल के शासकों की दूरदृष्टि व न्यायप्रियता से तो राजा साहब वाकिफ हैं ही, प्रयास करुंगा कि वर्तमान परिस्थिति से उन्हें अवगत करा पाऊं!’