पप्पू पत्रकार बन गया ✍️जितेंद्र शर्मा
कहते हैं न कि परिवर्तन में ही प्रोग्रेस है। यानी देश काल समय के हिसाब से इंसान को स्वयं में बदलाव करते रहना चाहिए। इसमें हमारे देश के मुखौटा पहने बेहद माहिर हैं। लोगों को पता ही नहीं चलता और वो देखते ही देखते क्या से क्या हो जाते हैं। लेकिन इसमें कुछ अपवाद भी निकल जाते हैं। जिनके बारे में लोग जान जाते हैं। इनमें से एक हैं हमारे देश को पीढ़ी दर पीढ़ी नेतृत्व देने वाले परिवार के चिराग। दरअसल बेचारे बड़े भोले हैं। इसीलिए लोग उनका मजाक भी बहुत उड़ाते हैं। अब इसमें भला उनका क्या दोष? जिस राजगद्दी की शोभा उनके पूर्वज बढ़ा चुके हैं, उसके लिए उन्होंने भी स्वप्र देखा और प्रयास किया, कर भी रहे हैं। फिर लगातार मिल रही असफलताओं से परेशान होकर उन्होंने कुछ समय के लिए अपना रोल बदल दिया तो क्या गलत किया। उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था पर आरबीआई के पूर्व चीफ का साक्षात्कार लेकर सरकार को घेरने का प्रयास ही तो किया था। विपक्ष में रहते हुए यह उनका काम भी है। हां, ये अलग बात है कि उन्होंने लीक तोडक़र ऐसा प्रयास किया। लेकिन ये क्या? लोग इस पर भी टिप्पणी करने लगे। बोलने लगे कि पप्पू राजनीति में फेल हो गए तो पत्रकारिता में किस्मत आजमा रहे हैं। वैसे साक्षात्कार गजब का था। इसमें कोई दो राय नहीं कि पत्रकारिता में उनकी दुकान अच्छी चल पड़ेगी। अंतर केवल इतना होगा कि कई लोग पत्रकारिता करते हुए राजनीति में जाकर अपना भविष्य संवारते हैं तो ये राजनीति करते हुए पत्रकारिता में कुछ अलग करने का प्रयास कर लेंगे। वैसे भी राजनीति तो उनके लिए घर की बात है। वैसे भी यही कहा जाता है कि राजनीति और पत्रकारिता तो सेवा कार्य है। अब जो आदमी दो दो सेवा कार्य में अपना जीवन लगाएगा उसे मेवा तो मिलने से भला कौन रोक सकेगा।
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