इंद्र का सिंहासन डोला। डोलना ही था। देवलोक में आपात बैठक बुलाई गई, लेकिन खैरागढ़ में अफसरों की कुर्सी टस से मस नहीं हुई…
सीन-1
देवलोक में आपात बैठक चल रही है। देवराज इंद्र सिंहासन पर बैठे हैं। चिंता की लकीरें गहरी हैं। बैठने के अंदाज में बेचैनी है। जरूर गद्दी पर आफत आन पड़ी है। सूर्यदेव की भी हालत कम नाजुक नहीं! पवनदेव भी टिक कर नहीं बैठ पा रहे!
देवताओं की खुसुर-फुसुर से हालात टटोलिए।
‘ना जाने देवर्षि कब आएंगे और कब ये दिशा भ्रम दूर होगा। मंदिर में भक्तों की लाइन लगी हुई है। हनुमान जी को प्रभार देकर आया हूं', शनिदेव की फुसफुसाहट कानों में पड़ी।
‘निश्चिंत होकर बैठिए। पवन पुत्र किसी को खाली हाथ नहीं लौटाने वाले, पर उनके पिता इतने चिंतित क्यों हैं', अग्निदेव ने शनिदेव के कान में भुनभुनाया।
‘वही, दिशा भ्रम! सूर्यदेव की तरह पवन भी असमंजस में हैं। अब नारद मुनि आएं तो स्थिति स्पष्ट हो', शनिदेव बाहर झांकते हुए बोले।
‘लेकिन…', अग्निदेव के बोलने से पहले आवाज गूंजी नारायण… नाSSरायण! नारद मुनि का प्रवेश हुआ और बात अधूरी रह गई।
देवराज सहित सभी देवों ने उठकर उनका अभिवादन किया।
इसीलिए श्रीमदभगवतगीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने मुनिराज नारद की महत्ता स्वीकार करते हुए कहा है-
देवर्षिणाम च नारदः। देव ऋषियों में मैं नारद हूं।
सीन-2
देवताओं का गुस्सा फूटा...
‘ये कैसी अफवाह है मुनिवर? कौन फैला रहा है? कुदरत के कानून को बदलने का दुस्साहस भला कौन कर सकता है', सूर्यदेव का पारा चढ़ा।
‘क्या वह अज्ञानी है? उसे सौरमंडल का ज्ञान नहीं? वह नहीं जानता कि सूर्य ने दिशा बदली तो मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र आदि सभी ग्रहों की दशा बदल जाएगी। पूरा सौरमंडल तहस-नहस हो जाएगा', देवराज सिंहासन से उठ खड़े हुए।
‘आप सभी का गुस्सा जायज है। मैं खैरागढ़ से सारे फसाद की जड़ उखाड़ लाया हूं', देवर्षि ने माहोल शांत करने की कोशिश की।
‘कहां है वह दुष्ट', शनिदेव तमतमाए।
‘खैरागढ़िया हाज़िर होSSSSS,' देवराज का इशारा पाते ही दरबान पुकार लगाता है और सांवला सा शख्स हाथ में कागजात लिए दरबार में प्रवेश करता है।
सीन-3
इंद्र के दरबार में पेशी शुरू हुई...
‘यह डंडा शरण है। सवाल खूब पूछता है। तंत्र को कटघरे में खड़ा करता है। जिम्मेदार परेशान हैं इससे, नारायण… नाSSरायण’, नारद जी ने व्यंग्यात्मक लहजे में उस शख्स का परिचय दिया।
‘ओह्ह! ...तो क्या हमें भी यह खैरागढ़िया तंत्र के षडयंत्र का हिस्सा मानता है', देवराज ने वज्र थामते हुए सवाल किया।
‘यह कहता है कि चौहद्दी और नक्शा तो बदलने से रहा, सूरज को ही दिशा बदलनी होगी, नारायण… नाSSरायण।’
‘ऐसा कैसे हो सकता है मुनिवर? मेरी दिशा बदली तो सुर-असुर, दानव-मानव सभी त्राहिमाम की गुहार लगाएंगे।'
‘देखो जरा! बात सुनकर कैसे बेशरमों की तरह मुस्कुरा रहा है', डंडा शरण के होठों पर मुस्कान देख अग्निदेव आग बबुला हुए।
सीन-4
देवराज से सीधा संवाद चल रहा है...
‘इस धृष्टता का कारण बताओ डंडा शरण। तुम्हारी निर्लज्जता समझ से परे है', इंद्र का लहजा सख्त हुआ।
‘क्षमा चाहता हूं देवराज! लेकिन खबर का असर देखकर रहा नहीं जा रहा।'
‘कैसे???'
‘देखिए ना... इंद्र का सिंहासन डोल गया। देवलोक में आपात बैठक बुला ली गई। मुझे बतौर मुजरिम पेश कर दिया गया, किन्तु खैरागढ़ में अफसरों की कुर्सी टस से मस नहीं हुई।'
‘ऐसा क्यों..?'
‘43 करोड़ के प्रोजेक्ट में संगठित भ्रष्टाचार की बू आ रही है, महाराज! अब तो वे यह प्रमाणित करने में लगे होंगे कि वहां, उस जगह पर सूरज दक्षिण दिशा से ही निकलता है।’
‘…लेकिन यह झूठ है। शाश्वत सत्य को प्रमाण की आवश्यकता नहीं। अब क्या इसे भी साबित करना होगा?'
‘बिल्कुल! मैं तो कहता हूं आप भी दिशा का प्रमाणीकरण करवा ही लीजिए। हो सके तो रजिस्ट्री भी।'
‘ये तो कलयुग की पराकाष्ठा है, नारायण… नाSSरायण!'
‘चाहे जो भी हो! सरकारी दस्तावेज तो बनाने ही होंगे, वरना कल किसी ने दावा ठोक दिया तो लेने के देने पड़ जाएंगे!’
नारद मुनि की सलाह पर देवराज ने सूर्यदेव को दिशा का प्रमाणीकरण करवाने का आदेश दिया।
सीन-5
खैरागढ़ का तहसील कार्यालय। साहब कुर्सी पर बैठे हैं। नीचे मजमा लगा हुआ है। नजरभर देखने के बाद…
‘नई नौटंकी शुरू किए हो क्या, डंडा शरण? बायपास की सर्जरी से मन भर गया तुम्हारा?’
‘आप सूर्यदेव हैं और आप देवर्षि नारद। देवलोक से आए हैं। दिशा का प्रमाणीकरण करवाने।’, डंडा शरण ने बात काटते हुए दोनों का परिचय दिया।
‘दिशा का प्रमाणीकरण..? अच्छा..! इसीलिए पूछा था, नई नौटंकी के बारे में। तुम्हारा भूत नहीं उतरा है अभी। (थोड़ी देर रुककर) नहीं हो सकता। लाख सिर पटक लो! जो नक्शा बन गया, उसे नहीं बदल सकते। सरकार को करोड़ों का घाटा हो जाएगा’, जिम्मेदार बोला।
‘घाट-घाट का पानी पीने वाले सरकारी घाटे को लेकर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं, नारायण… नाSSरायण’
‘क्या??? क्या बोले?’, नारद जी की बात जिम्मेदार को चुभी।
‘कुछ नहीं! तुम तो सिर्फ ये बताओ कि प्रक्रिया क्या है?’, सूर्यदेव ने बात संभाली।
‘अर्जी दे दो। साहब तय करेंगे सूरज उगने की दिशा!’, जिम्मेदार बोला।
सीन-6
अर्जी देने के एक सप्ताह बाद। तहसील कार्यालय का वही कमरा। वही जिम्मेदार चेहरा!
‘तुममें से सूरज कौन है’, बनारसी बाबू पान चबाते हुए बाजू में आकर बोले।
‘जी… हम हैं!’
‘कोने में आइए’, (दोनों चल दिए)
‘कुछ है, कागजात वगैरह..?’
‘कैसा कागज?’
‘परचा, स्टाम्प, वसीयत, बी-1, बी-2, कुछ तो दिया होगा तुम्हारे पालनहार ने। यूं ही आ गए दिशा पर दावा ठोकने!’
‘कागज तो नहीं है, लेकिन यह शाश्वत सत्य है। जब से सृष्टि बनी है, तब से हम पूर्व दिशा से ही निकल रहे हैं और पश्चिम में डूबते हैं। बच्चा-बच्चा यह जानता है।’
‘बच्चों की गवाही नहीं मानी जाती, इतना भी नहीं जानते! कागज तो चाहिए ही’, पैर पटकते हुए वह चला गया।
पुकार लगी… सूर्यदेव उर्फ सूरज हाजिर होSSSS
‘ये कैसा मामला है भाई? भला दिशा का भी कोई प्रमाणीकरण होता है! कानून नहीं जानते हैं क्या?’, साहब ने नाक पर ऐनक अटकाई और तिरछी नजर से देखते हुए सवाल किए।
‘जी, हम तो कुदरत का कानून जानते हैं। यहां के कायदे से वाकिफ नहीं! डंडा शरण ने कहा दिशा का प्रमाणीकरण करवा लो, तो चले आए।’
‘पटवारी और आरआई को बुलाना जरा’, साहब का आदेश पाते ही दोनों चले आए। इनमें से एक वही बनारसी बाबू थे, उनकी जुगाली जारी थी।
‘साहब! पूरा मामला फर्जी है। सूर्यदेव उर्फ सूरज के पास न परचा है, न पट्टा। और तो और पालनहार ने कोई वसीयत भी नहीं की है। फिर कैसे मान लें कि पूर्व दिशा में इनका एकाधिकार है। एक सूरज के लिए शासन के करोड़ों का नुकसान करना वाजिब नहीं होगा!’
‘आखिर दक्षिण से निकलने में परेशानी क्या है, आपको? खूब निकल लिए पूरब से! अब नई दिशा का आनंद लीजिए। यदि फिर भी भ्रमित हो रहे हों तो बायपास की तरफ से नजर हटा लीजिएगा’, साहब ने अर्जी पलटते हुए सूर्यदेव को समझाइश दी।
‘…और हां, अब पांडादाह रोड की दक्षिण दिशा आपकी हुई। नक्शा बदलेंगे तो माथापच्ची करनी पड़ेगी। एकमात्र आपके लिए करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ेगा’, साहब ने सूर्यदेव को अपनी मजबूरी बताई और हाथ जोड़ लिए।
सीन-7
तहसील कार्यालय के बाहर। सूर्यदेव और मुनिराज नारद देवलोक के लिए प्रस्थान करने लगे।
‘देवराज से जाकर क्या कहूंगा कि पांडादाह मार्ग की दक्षिण दिशा मेरी हुई? हंसेंगे मुझ पर’, सूर्यदेव बुदबुदाए।
कुछ देर तक सोचने के बाद फिर बोले…
‘चाहो तो एकाध वर मांग लो डंडा शरण, लेकिन आज के बाद कभी ये मत लिखना कि दक्षिण से निकलकर उत्तर में डूबता है सूरज! बाकी रही देवराज की बात तो उन्हें हम संभाल लेंगे।’
‘लीला अपरंपार है प्रभु! सूर्यदेव को भी नहीं बख्शा। आखिर वे भी खैरागढ़िया रंग में रंग गए, नारायण… नाSSरायण।’
स्वामी नारायण, नारायण हरि-हरि…
तेरी लीला सबसे न्यारी-न्यारीSSS, हरि-हरि
तेरी महिमा प्रभु है प्यारी-प्यारीSSS हरि-हरि
हरि भजन के अलार्म से आंख खुली तो देखा सुबह के 4 बज चुके थे।