ऑडिटोरियम के बाहर बैठक करते गैर शिक्षक कर्मचारी इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ एक बार फिर सुर्खियों में है। विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. लवली शर्मा के अमर्यादित और अपमानजनक बयान के बाद यहां का माहौल गरमा गया है। विश्वविद्यालय के संयुक्त गैर शिक्षक कर्मचारी संघ ने कुलपति के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए 17 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा कर दी है। कर्मचारी संघ के साथ सर्व समाज के प्रतिनिधि भी खुलकर सामने आ गए हैं और विश्वविद्यालय प्रशासन की मानसिकता पर सीधा सवाल उठा रहे हैं। जारी प्रेस वार्ता में संघ ने बताया कि कुलपति डॉ. लवली शर्मा ने गैर शिक्षक कर्मचारियों को अभिशाप, गुणहीन, अप्रशिक्षित और अनावश्यक जैसे शब्दों से संबोधित किया है, जो न केवल कर्मचारियों का अपमान है, बल्कि छत्तीसगढ़ की मेहनतकश परंपरा और संविधान में निहित सामाजिक न्याय की भावना को भी ठेस पहुंचाता है। कर्मचारी संघ ने आरोप लगाया कि कुलपति का यह बयान जातिगत पूर्वाग्रह और अहंकारी मानसिकता को दर्शाता है। 40 वर्षों की सेवा, फिर भी अपमान? जारी प्रेस वार्ता में बताया गया कि विश्वविद्यालय की प्रशासनिक व्यवस्था और आधारभूत ढांचा पिछले चार दशकों से गैर शिक्षक कर्मचारियों की मेहनत से सशक्त हुआ है। इनमें से अधिकांश कर्मचारी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं। वरिष्ठ कर्मचारी जैसे कि सी.आर. कुंजाम, जय नारायण सठिया, कैलाश हुमने, नवीन मोहबे और दिनेश्वरी देवदास – सभी ने वर्षों तक ईमानदारी से सेवाएं दी हैं। ऐसे कर्मचारियों को अभिशाप कहना अत्यंत निंदनीय और जातिवादी सोच को उजागर करता है। बाहरी कुलपति की स्थानीय संस्कृति से अनभिज्ञता संघ ने यह भी सवाल उठाया कि डॉ. लवली शर्मा स्वयं उत्तर प्रदेश से हैं और छत्तीसगढ़ की सामाजिक मर्यादा, कार्यसंस्कृति और स्थानीय संवेदनशीलता की समझ उनके व्यवहार में स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई देती। विश्वविद्यालय हमेशा बाहरी छात्र-छात्राओं और अधिकारियों का स्वागत करता रहा है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि कोई बाहरी अधिकारी यहां के मूल निवासियों को हीन दृष्टि से देखे। “कामचलाऊ वस्तु” नहीं, विश्वविद्यालय की रीढ़ हैं कर्मचारी कुलपति द्वारा यह कहना कि “अगर जरूरत होगी तो बुलाएंगे, नहीं होगी तो नहीं बुलाएंगे”, इस बात को दर्शाता है कि वे कर्मचारियों को एक संस्था के अहम स्तंभ के बजाय ‘काम चलाऊ संसाधन’ मानती हैं। संघ ने चेताया कि यह दृष्टिकोण केवल प्रशासनिक असंवेदनशीलता नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय को कमजोर करने वाला है। संविधान और सामाजिक न्याय की अवहेलना कर्मचारी संघ ने कहा कि यह बयान संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है, जिसमें समानता, सम्मान और गरिमा की रक्षा की बात की गई है। यह मामला केवल शब्दों का नहीं, बल्कि सामाजिक अन्याय और आत्मसम्मान के खिलाफ एक लड़ाई है। संघ की पांच बड़ी मांगे जारी प्रेस वार्ता में कर्मचारियों ने कुलपति से शशर्त माफ़ी की मांग करते हुए पाँच प्रमुख बिंदुओं पर तत्काल कार्रवाई की मांग की — 1. अभिशाप जैसे अपमानजनक शब्द को वापस लिया जाए और सार्वजनिक माफी मांगी जाए। 2. गुणहीन और अप्रशिक्षित जैसी टिप्पणियों पर खेद प्रकट किया जाए। 3. कर्मचारियों के साथ वार्ता तत्काल प्रारंभ की जाए। 4. पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच हो और दोषियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो। 5. भविष्य में कर्मचारियों के सम्मान के खिलाफ कोई टिप्पणी न की जाए। 17 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल संघ ने स्पष्ट किया कि यदि प्रशासन ने समय रहते उचित समाधान नहीं निकाला, तो आंदोलन को प्रदेश स्तर तक विस्तारित किया जाएगा। आंदोलन की जिम्मेदारी पूरी तरह विश्वविद्यालय प्रशासन और कुलपति की होगी।
"इतनी ज्यादा उन्होंने आहत किया है, तो असंयमित होकर बोला होगा तो बोला होगा, आजकल वीडियो एडिटिंग भी हो सकती है।"
– डॉ. लवली शर्मा, कुलपति, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़