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नाकामी : बाढ़ के बाद अस्तित्त्व में आई कार्ययोजनाओं का बुरा हाल  Featured

कोई आज भी हैं अधूरा , तो किसी ने तोड़ा दम


ख़ैरागढ़ 00 साल 2005 व 2007 की भीषण बाढ़ की बाद अस्तित्व में आई 3 बड़ी कार्ययोजनाएं या तो पूरी नहीं पाईं हैं,या भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी हैं। हालांकि इन कार्ययोजना में संलग्न अधिकारी,जनप्रतिनिधि और ठेकेदार करोड़ों की चांदी काट चुके हैं। जिला बनने के बाद इन कामों में तेज़ी आने की उम्मीद थी। लेकिन कमज़ोर राजनैतिक इच्छाशक्ति ने इन योजनाओं को जड़ें उखाड़ दी हैं।


 

बैराज का टूटा गेट कर रहा हादसे का इंतज़ार


तत्कालीन रमन सरकार ने ख़ैरागढ़ क्षेत्र को बाढ़ से बचाने के लिए 58 करोड़ के प्रधानपाठ बैराज की कार्ययोजना बनाई। काम शुरु हुआ,पर अधिकारी और ठेकेदारों ने बैराज को लूट का अड्डा बना डाला। घटिया क़्वालिटी के गेट खरीदे गए। स्तरहीन काम हुआ। परिणाम 2018 में गेट पानी का तेज बहाव नहीं झेल पाया और टूटकर मुड़ गया। तब से लेकर हर बार तेज़ बारिश पूरे नगर को डराए रखती है। 5 सालों में गेट टूटकर लटक रहा है। और बड़े हादसे का इंतज़ार कर रहा है।


नहीं हुआ बाइपास में पुल का निर्माण पूरा


बाढ़ के दौरान आवागमन बाधित न हो,इसलिए सोनेसरार से पिपरिया बाइपास की कार्ययोजना साल 2009 में  बनी। 2012 में बाइपास के आसपास ज़मीन की जमकर खरीद फरोख्त हुई। मुनाफाखोरों ने जमकर चांदी काटी। बाइपास का नक्शा 3 बार बदला गया। बाइपास की लागत 32 करोड़ से बनकर 53 करोड़ हुई। नेता,अधिकारी सबने मिलकर करोड़ो डकार लिए।लेकिन 15 साल बाद भी सड़क अधूरा है। पुल का काम अब भी अधूरा है। और हालात ऐसे हैं कि जब काम पूरा हो तब तक सड़क के मरम्मत का दौर आ जाए। 

खंडहर हो रहे आईएचएसडीपी के मकान 


बाढ़ जन्य क्षेत्रों में रहने वाले बाशिन्दों के लिए आईएचएसडीपी योजना के तहत 492 मकान बनाए गए। योजना अनुसार बाढ़ जन्य क्षेत्र को लोगों को इन मकानों में शिफ्ट किया जाना था। लेकिन 8 करोड़ की लागत से बने ज्यादातर मकान खाली पड़े हुए हैं। जो बचे हैं वे या तो अय्याशी के अड्डे में तब्दील हो चुके हैं।या खंडहर होने जा रहे हैं। 


अतिवृष्टि में बिगड़ेंगें हालात


आमनेर,पिपरिया और मुस्का से घिरा ख़ैरागढ़ टापूनुमा है इसी वजह से साल 2005 व 2007 में नगर भीषण बाढ़ का मुंह देख चुका है। गेट टूटे होने से आमनेर के तेज बहाव का प्रभाव नगर में पड़ेगा। वहीं बाइपास पूरा न होने से अतिवृष्टि का असर आवागमन पर भी पड़ सकता है। क्योंकि नगर के भीतरी पुल जिसमें टिकरापारा और शिव मंदिर रोड के पुल शामिल हैं। आज इनकी ऊँचाईं कम है। आज भी नया बस स्टैंड के पीछे आईएचएसडीपी में मकान पाने वाले लोग शामिल हैं। नदी किराने रहने वाले इन रहवासियों का अब तक व्यस्तथापन नहीं किया गया है।


अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की चारागाह बनी योजनाएं


इन योजनाओं का भी बुरा हाल


पीएचई ने 80 लाख की लागत जल शोधन संयंत्र बनाया,पाइप लाइन का काम पूरा हुआ लेकिन संयंत्र शुरू नहीं हुआ। अब भवन खंडहर हो चुका है। 

 

जल आवर्धन की कार्ययोजना तत्कालीन अध्यक्ष विक्रांत सिंह के कार्यकाल में बनाई गई,निविदा मीरा गुलाब चोपड़ा के कार्यकाल निकाली गई। काम अब भी अधूरा।


गेट रिपेयर के लिए गया 6 करोड़ का एस्टीमेट - नीलेश रामटेके,एसडीओ,जल संसाधन


अनुविभागीय अधिकारी जल संसाधन नीलेश रामटेके ने बताया कि गेट और सलूज़ रिपेयर का 6 करोड़ एस्टीमेट गया है। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए डुबान की ओर डेम की कार्ययोजना पर भी काम चल रहा है। ताकि टैंक में पानी स्टोरेज हो सके। एसडीओ रामटेके ने बताया कि एस्टीमेट 1 साल पहले शासन के पास स्वीकृति के लिए गया है।

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Last modified on Wednesday, 11 September 2024 15:20
रागनीति डेस्क-1

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