“खैरागढ़ वो मिट्टी है जिससे मैं बनी हूं। अगर मिट्टी नहीं होती तो यह आकार भी नहीं होता।”
छत्तीसगढ़ में हिंदी फिल्म बन रही है ग्रे। धमधा के खेतों में तुषार के साथ प्रियंका भी इसकी शूटिंग में व्यस्त हैं। बॉलीवुड से जोड़कर इन नामों को पढ़ने वालों ने कपूर और चोपड़ा जैसे सरनेम स्वाभाविक तौर पर जोड़ लिए होंगे। फिलहाल हम उनकी बात नहीं कर रहे। जिनकी बात कर रहे हैं उनका सीधा जुड़ाव खैरागढ़ से है। दृश्यकला से जुड़े कलाकार इन दोनों ही नामों से अंजान नहीं।

भिलाई में रहने वाली प्रियंका को कैनवास पर रंगों से खेलने में महारत हासिल है, वे कलम के जरिए कल्पना को आकार देना भी जानती हैं। जितनी अच्छी चित्रकार हैं, उतनी ही अच्छी लेखिका भी। उन्होंने इंटरनल लव इन द फैंटम एजेस (प्रेत युग में अनंत प्रेम) में मुख्य भूमिका निभाई है। इस फिल्म का चयन जर्मनी के एक फिल्म महोत्सव में हुआ और 20 अक्टूबर को फिनिश-जर्मन आर्ट स्पेस, टूलबॉक्स में इसका प्रदर्शन भी किया गया। उन्होंने स्नेह संपदा , प्रिजनर्स ऑफ़ मून तथा शैडो ऑफ थॉट्स फिल्मों के लिए कथा एवं पटकथा लेखन किया है। प्रिजनर्स ऑफ मून तथा शैडो ऑफ थॉट्स फिल्म का चयन कान्स फिल्म महोत्सव में हुआ है।
फिलहाल फिल्म ग्रे की प्रोड्यूसर हैं और अपने पति व इस फिल्म के डायरेक्टर तुषार वाघेला के साथ इसे पूरा करने में दिनरात मेहनत कर रही हैं। प्रियंका का कहना है कि जनवरी 2019 तक उनकी फिल्म पूरी हो जाएगी। फिल्म ग्रे की कहानी एक चित्रकार पर केंद्रित है, जो बहुत ही कम उम्र में पढ़ाई के लिए घर छोड़ दिया। लौटा भी तब जब पिता ने दुनिया छोड़ दी। अब नक्सलवाद से जूझते ही छत्तीसगढ़ में अपनी पुश्तैनी संपत्ति को बेचने के लिए गांव आया है।
बतौर चित्रकार प्रियंका बचपन से ही रंगों से घिरी रहीं। उनके पिता स्व. शिशिरकांत बख्शी खुद एक विजुअल आर्टिस्ट रहे। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के दृश्यकला विभाग में कार्यरत होने के कारण दीवान बाड़ा स्थित उनके मकान में वरिष्ठ चित्रकारों, लेखकों और कलाकारों का आना-जाना रहा। इस माहौल में उनका हुनर निखरा और आठ साल की उम्र में नन्हीं सी पिंकी ने अपनी पहली पेंटिंग कर स्कूल कांपिटिशन में हिस्सा लेकर भारत भवन भोपाल में पहला अवार्ड जीता। ससुराल के माहौल ने उनकी प्रतिभा को नया आयाम दिया। पति तुषार ने उनकी कला को समझा और वे रचनात्मकता के करीब होती चली गईं।
हालही में 29 सितंबर से 20 अक्टूबर तक दिल्ली के अम्पास आर्ट गैलरी में लैंडस्केप-रियल एंड इमेजिन नाम शो में उनके बनाए चित्रों की प्रदर्शनी लगी। दिल्ली में इस वर्ष की यह तीसरी प्रदर्शनी थी। प्रियंका ने खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ फाइन आर्ट की पढ़ाई की है और विगत 15 वर्षों से देश-विदेश के एक्जिबिशन में हिस्सा ले रही हैं। चित्रकारी के साथ उनकी लेखनी को भी कई पुरस्कार मिले हैं। कविताओं के लिए उन्हें दीपक अरोड़ा स्मृति सम्मान दिया गया। उनकी पहली किताब 2017 में बोधि प्रकाशन ने प्रकाशित की।
प्रतिभा की धनी प्रियंका स्टूडेंट लीडर भी रही हैं। छात्र जीवन में उनकी नेतृत्व क्षमता उभरकर सामने आई जब हायरसेकंडरी में गर्ल्स स्कूल की शाला नायिका बनीं। आज अपने पति तुषार के साथ फिल्म प्रोडक्शन की कमान संभाले हुए हैं। प्रियंका कहती हैं कि अपनी सफलता का श्रेय देना सबसे कठिन कार्य है। मैं मानती हूं कि हमारे जीवन में जन्म देने वाले माता-पिता के अलावा परिवार के अन्य सदस्यों, मित्रों, शिक्षकों, आलोचकों के साथ कठिनाई पैदा करने वाले लोगों का भी योगदान होता है। लेकिन आज पेंटिंग और फिल्म के क्षेत्र में मैं जो भी काम कर रही हूं उसका पूरा श्रेय सिर्फ और सिर्फ मेरे पति तुषार वाघेला को जाता है।
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