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खैरागढ़ को हंसकर विरोध करना सिखा गए रंग निर्देशक पद्मश्री बंसी दा...

By November 20, 2018 1061 0

“आपका रुलर (शासक) पहले से ज्यादा समझदार हो गया है। वे आपके खाने पर या आपके मकान पर अटैक नहीं कर रहे। वे अटैक कर रहे हैं आपकी हंसी पर।”

नियाव@ खैरागढ़

1. मंगलवार को प्रदेश की 72 सीटों के लिए चल रहे मतदान के बीच राष्ट्रीय संगोष्ठी में पहुंचे सुप्रसिद्ध रंग निर्देशक पद्मश्री बंसी कौल ने प्रासंगिक टिप्पणी कर दी। कहा- आपके रुलर (शासक) आपकी हंसी पर अटैक कर रहे हैं। वे चाहते हैं कब ये मनुष्य हंसना बंद कर दे। क्योंकि जब कोई हंसता है तो विचार करता है। क्योंकि यही आपका प्रोटेस्ट (विरोध) है।

पद्मश्री बंसी कौल।

2. इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के थिएटर विभाग में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन अवसर पर पहुंचे बंसी दा ने कहा कि रुलर पहले से ज्यादा समझदार हो गए हैं। वे अापके खाने या मकान पर अटैक नहीं कर रहे। उन्होंने एक बात और कही कि विसडम (बुद्धिमता) सामूहिकता से निकलती है। जब समूह में किसी बात पर चर्चा होती है तो वहीं कही गई बातों में से कोई ऐसा वाक्य निकलता है जिसे बुद्धिमान पकड़ते हैं।

3. ऐसी कौन सी चीज है जो मनुष्य को जानवरों से अलग करती है? हंसी। हंसना एक वोकल प्रोटेस्ट है। लड़की हंस देती थी तो उसे बदतमीजी समझा जाता था। बच्चा जोर से हंस देता तो उसे धीमे हंसने कहा जाता। हंसना एक तरह का विचार था। हंसना एक प्रोटेस्ट था।

मिशन स्टेटमेंट तय करें संस्थाएं

4. उन्होंने बताया कि नाचा, नौटंकी, भंवई आदि का अपना ट्रेनिंग सिस्टम था। इसी की वजह से उनमें नवीनता बनी रहती थी। रंग विदूषक का एक मिशन स्टेटमेंट है। हर संस्था को एक मिशन स्टेटमेंट तय करना होगा। क्योंकि जन्म और मृत्यु तय है। इसके बीच समय का उपयोग करना सीखना होगा।

हर समाज में नाटक कहने के तरीके अलग: केंद्रे

5. इससे पहले एनएसडी के पूर्व निदेशक प्रो. वामन केंद्रे ने कहा कि हर समाज में नाटक कहने के तरीके अलग हैं। पंडवानी एक है तो कीर्तन दूसरा। परंपरा ने ही आधुनिकता देने की कोशिश की है। दृश्य, श्राव्य और काव्य की अनुभूति ही नाटक है।

रामचरित मानस का संसार एक यूथोपिया: सहगल

6. संगोष्ठी में देश के चर्चित नाटककार प्रताप सहगल ने कहा कि नाटक के हिसाब से देखें तो तुलसी के राम अलग हैं और बाल्मीकि के अलग। रामचरित मानस का संसार एक यूथोपिया है। संगोष्ठी में समीक्षक सत्यदेव त्रिपाठी ने भी अपने विचार रखे। संगोष्ठी में प्रो. मांडवी सिंह, डॉ. गोरेलाल चंदेल, जीवन यदु, प्रो. आईडी तिवारी, प्रो. काशीनाथ तिवारी, डॉ. योगेंद्र चौबे, ज्ञानदेव सिंह आदि मौजूद रहे।

यहां वीडियो देखें और सुनें बंसी दा को...

 

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Last modified on Thursday, 09 January 2020 12:07
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