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कला का पेट बड़ा है, जो स्थिर नहीं है उस पर संगीत का पूरा जीवन आधारित है

By September 18, 2018 1038 0
"आवाज़ में शून्य पैदा करना चाहिए. राग कपड़े-वपड़े नहीं पहनते. वे सब नंगे हैं. कहने का अधिकार राग को है अक्षर को नहीं. काल में बार-बार बात करने का गुण नहीं है. कला का पेट बड़ा है, जो स्थिर नहीं है उस पर संगीत का पूरा जीवन आधारित है".[कुमार गंधर्व]



ऐसी न जाने कितनी बातें कुमार गंधर्व अनायास ही कह जाते थे और उनमें से हरेक एक नायाब टिप्पणी या उत्तेजक विचार है.

एक बार भारतीय सुगंध के व्यापार से संबंधित कोई अधिकारी देवास आए और कुमार जी से मिलने उनके घर पहुंचे.  वे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भारतीय सुगंध के बेहद घट गए प्रतिशत के बारे में बता रहे थे. कुमार जी ने टिप्पणी की, ‘व्यापार छोड़िए हमारे संगीत में ही सुगंध इतनी कम हो रही है.’

....कुमार गंधर्व का संगीत उनकी गहरी रसिकता में रसा-बसा संगीत है. उसमें जो भोगता है और जो रचता है उसके बीच मानो कोई दूरी नहीं रह गई है. उसमें सुगंध और स्पर्श है, निपट स्थानीयता है, सारे तनाव और द्वंद्वों के बावजूद और सारी बौद्धिक और आध्यात्मिक रहते हुए भी, शुद्ध आनन्द लेने रस पाने-बांटने का ऐसा खुला साहस और न्योता है जिसकी अनसुनी नहीं की जा सकती.

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Last modified on Thursday, 09 January 2020 12:18
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