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'जानवर कहीं के...!' ✍️प्राकृत शरण सिंह

सुनो, सुनो, सुनो..!

‘सभी ध्यान से सुनो! जंगल पर आफत आई है। चिंता की खाई गहराई है। दरबार में सुनवाई है। नदी किनारे तनहाई में शाम को राजा ने बैठक बुलवाई है’, पेड़ों पर उछलते-कूदते बंदर की आवाज जंगल में गूंजी, तो जानवरों के कान खड़े हो गए…

‘ऐसे… यूं,,, अचानक… बैठक!!! बात कुछ हजम नहीं हुई’, पेट पर हाथ फेरते हुए भालू बोला।

‘कह तो रहा है… आफत है, चिंता है! मामला गंभीर मालूम पड़ रहा है’, अजगर ने भालू की तरफ फन कर फुंकारा।

‘शिकारियों का लोचा होगा, या लकड़ी तस्करों की कारस्तानी’, यह कहते हुए तेंदुए ने जम्हाई ली।

‘रुको!!! शायद, मैं जानता हूं कि इस बैठक का मुद्दा क्या होगा’, भालू उछला।

‘चींचींचीं…बताओ तो भला, भालू दादा’, पेड़ पर बैठी चिड़िया बोली।।

‘मामला दरिंदगी का है!? मगरकुंड की घटना से शेर चिंतित दिखे थे। कह रहे थे- समाधान नहीं ढूंढा तो एक-एक कर सब खत्म हो जाएंगे।’

‘सचमुच! दरिंदों ने हत्या करने के बाद दांत उखाड़े, पैर काटकर नाखून नोच डाले। और तो और, पूंछ-मूंछ निकालने तक हैवानियत नहीं त्यागी’, भालू का समर्थन करते समय तेंदुए की आंखें लाल दिखीं।

‘चींचींचीं… मुझे भी यही लगता है’

 

सीन-2

बैठक का समय हो चुका है। नदी किनारे सारे जानवर मौजूद हैं। तभी पहाड़ी की तरफ से शेर की एंट्री हुई। वह आया और चट्‌टान पर पैर पसार कर खड़ा हो गया। बैठक शुरू हो गई…

‘शैतान हैं सारे! भरोसे के लायक नहीं। कहतें हैं, रक्षक हैं! गर रक्षक ऐसे हैं, तो भक्षक कैसे-कैसे होंगे!?’

शेर की गर्जना से बैठक में उथल-पुथल मच गई। सभी जानवर दुबक गए। किसी ने चूं तक बोलने की हिम्मत नहीं दिखाई।

‘शान्ति… शान्ति… शान्ति…’, गजराज के शान्ति पाठ से माहौल शान्त हुआ।

‘किस पर आग बबुला हो रहे हैं। कौन रक्षक? कौन भक्षक? किसने भरोसा तोड़ दिया, बताओ तो…’, भालू दादा शेर से रू-ब-रू हुए।

‘लगता है अखबार नहीं पढ़ते!!! वर्दी में छिपे भेड़ियों का काम है, यह’, शेर फिर गुर्राया, लेकिन बात पूरी नहीं हुई। उधर भेड़िया मायूस हुआ।

‘मैं बताता हूं। जगदलपुर पुलिस और वन विभाग की संयुक्त टीम ने गुरुवार-शुक्रवार की दरमियानी रात बाघ की खाल बरामद की है और इस मामले में पांच पुलिसवालों सहित दो स्वास्थ्य कर्मचारियों व एक सिविलियन को गिरफ्तार किया है’, बंदर ने एक सांस में पूरी कहानी कह दी।

‘फिर तो मगरकुंड की घटना भी संदेह के दायरे में है। वर्दीधारियों के होते हुए शिकारी घुसे तो घुसे कैसे’, भालू दादा का पारा चढ़ा।

‘शिक्षा के मंदिर में भी चांडालों का डेरा है। पर्यावरण का पाठ पढ़ाने वाले गोरखधंधे के हितैषियों में शामिल हैं’, शेर ने आंखें तरेरीं।

‘भला वो कैसे’, भालू की जिज्ञासा जागी।

‘सरकारी स्कूल का शिक्षक खुद सौदागर निकला, जिसने दो लाख में खाल का सौदा किया’, बंदर ने बात पूरी की।

 

सीन-3

सभी ने वर्दी पर लानत भेजी और शिक्षक के किरदार को चर्चा के लिए चुना। गौर फरमाइए…

‘एक शिक्षक ऐसे भी हैं, जिन्हें मैं जानता हूं। उन्होंने ऐसी ही ज्यादतियों से तंग आकर समाज को शिक्षित करने के लिए कहानी की किताब लिख डाली’, अजगर फुसफुसाया।

‘फुसफुसाना छोड़ो, नागराज। आवाज ऊंची करो’, यह भारी आवाज शेर की थी।

‘ये मुंह और मसूर की दाल, लेकिन हर शिक्षक ऐसा नहीं है! हां… वर्दी के पीछे भेड़ियों की संख्या अधिक होने की बात मैं भी मानता हूं’, अजगर ने शेर की दूसरी बात नकारी और पहले पर हामी भरकर संतुलन बनाया।

‘है कोई उदाहरण?’

‘है ना!!! खैरागढ़ के ही शिक्षक हैं। उन्होंने किताब तो हम पर लिखी है, लेकिन पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया है’, आत्मविश्वास से लबरेज अजगर ने परिसर का चक्कर काटते हुए यह बात कही।

‘अच्छा!!! कैसे???’

‘जंगल के रखवार! यह उस कहानी का शीर्षक है। इसमें रखवार हम हैं यानी उन्हें भी सिस्टम पर भरोसा नहीं रहा’, यह कहते हुए अजगर पेड़ पर जा बैठा।

‘सच ही तो है! शिक्षक इस कहानी को समझा पाए तो वर्दी को शर्म आएगी और समाज से दरिंदगी खत्म हो जाएगी’, गजराज ने मुहर लगाई।

‘कैसे???’

‘अगर उनका भरोसा वर्दी पर होता, तो उन्हें रखवार चुनते और पूरी कहानी उन पर लिखते। एक शिक्षक ने पर्यावरण संरक्षण के लिए इंसानों को छोड़ जानवरों के किरदार चुने, यह क्या कम है?’

 

सीन-4

बैठक का एजेंडा यही था, ‘जंगल के रखवार’। शेर ने किताब पढ़ रखी थी। सवाल पूछकर जानवरों की समझ भी परख ली। अब बारी थी जिम्मेदारी देने की। शेर ने एक युक्ति सुझाई…

‘जंगल के रखवार, इसी नाम से समिति बनेगी। अध्यक्ष-उपाध्यक्ष सहित 20 सदस्य होंगे। पहले सदस्य चुने जाएंगे, फिर उन्हीं में से अध्यक्ष-उपाध्यक्ष! एक-एक कर अपनी खूबियां बताएं और दावेदार बन जाएं। आगामी बैठक में चुनाव होंगे’, शेर ने ऐलान किया।

‘…जैसे होते हैं’, बंदर का सवाल आया।

‘बिल्कुल नहीं! यहां पूरी प्रक्रिया लोकतांत्रिक होगी। सभी अपने-अपने क्षेत्र में ही वोट डालेंगे। कोई भी मतदाता को भ्रमित नहीं करेगा। जो जिस दल का है, उसी से चुनाव लड़ेगा और उसी दल के प्रत्याशी का प्रचार करेगा’, शेर दहाड़ा।

‘छोटा सा जंगल है महाराज! दल के दलदल से बाहर…’, सियार बोला।

‘देखो जरा! ये बात बोल कौन रहा है’, बंदर ने चुटकी ली।

कोई चालाकी नहीं! जंगल जरूर है, पर अब यहां जंगलराज नहीं चलेगा। चुनाव, चुनाव की तरह ही लड़े जाएंगे। भरोसा नहीं टूटने देना है। शिक्षक ने कहानी लिखी है। हर किरदार को जीवंत करना है। जंगल के रखवार में ईमानदारों की जरूरत है ताकि शिकारी कोसों दूर रहें’, शेर ने सभी की आंखों में आंखें डालकर यह बात कही।

 

सीन-5

बैठक की समाप्ति बाद जंगल के रास्ते…

‘अरे ओ डंडाशरण! कहां भागे जा रहे हो? बैठक खत्म हो चुकी है’, बंदर ने पगडंडी पर दौड़ रहे शख्स को पुकारा।

‘बैठक की ही रिपोर्टिंग करने आया हूं…’, डंडाशरण ने चलते-चलते जवाब दिया।

‘भालू दादा से मिल लो, एक-एक जानकारी लिख रखी है, उन्होंने’, कहते हुए बंदर ने गुलाटी मारी।

‘ये बंदर भी ना, गुलाटी मारना नहीं छोड़ेगा’, बोलते हुए डंडाशरण पलटा और भालू से जा टकराया।

लिख लो- जंगल के रखवार नामक समिति बनेगी। इस समिति के लिए अध्यक्ष-उपाध्यक्ष सहित 20 सदस्य चुने जाएंगे। चुनावी प्रक्रिया पूरी तरह लोकतांत्रिक होगी। जो जहां रहता है, वहीं वोट डालेगा। जंगल में अब जंगल राज नहीं चलेगा’, भालू ने चार लाइन में बैठक का सार बता दिया।

‘कब है चुनाव, कब है?’

‘उतावले मत हो! भरपूर मसाला मिलेगा। मुद्दे भी गरमाएंगे। हरेक प्रत्याशी खुलकर बोलेगा। जंगल के रखवार चुपचाप नहीं चुने जाएंगे। लो, बूंदाबांदी भी शुरू हो गई’, आसमान की ओर देखते हुए भालू भागा।

डंडाशरण सोच रहा है… ‘कहानी का इतना असर! मानना पड़ेगा। जानवर जंगलराज खत्म करने पर उतारू हो गए। शिक्षक से ज्ञान लिया। वर्दी की जिम्मेदारी ली। फिर षड़यंत्र से परे लोकतंत्र को जीवंत रखने का संकल्प ले लिया, जानवर कहीं के..!’

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Last modified on Tuesday, 16 March 2021 04:25

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